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________________ द्वार ६८ ३१६ जंघाचारण विद्याचारण चारित्र और तप के प्रभाव से जिन्हें गमन-आगमन की लब्धि प्राप्त हुई हो। विद्या के प्रभाव से जिन्हें गमनागमन की लब्धि प्राप्त हुई हो। १.जंघाचारण-ये रुचकवर द्वीप तक जा सकते हैं। इनका गमनागमन किसी अवलंबन से ही होता है जैसे सूर्य की किरणों का अवलम्बन लेकर गमन करना। विद्याचारणों का गमनागमन विद्याशक्ति से होता है अत: वे निरालंबन ही जाते-आते हैं। जाते समय एक ही उत्पात में रुचक द्वीप पहुँच जाते हैं, किन्तु आते समय एक ही उत्पात में नन्दीश्वर पहुँचते हैं और दूसरे उत्पात में अपने स्थान पर आते हैं। इस प्रकार गमन और आगमन में तीन उत्पात होते हैं। मेरुशिखर पर जाना हो तो एक उत्पात में पंडक वन पहँचते हैं, किन्तु आते समय एक उत्पात में नन्दीश्वर और दसरे उत्पात में अपने स्थान पर आ जाते हैं। जंघाचारण-लब्धि, चारित्र और तप के प्रभाव से प्रकट होती है। इसका प्रयोग करते समय उत्सुकता होती है और उत्सुकता प्रमाद का लक्षण है। इससे चारित्र का अतिशय घटता है अत: आते समय दो उत्पात होते हैं। २. विद्याचारण-ये नन्दीश्वर द्वीप तक बिना किसी अवलम्बन के जा सकते हैं। एक उत्पात में मानुषोत्तर पर्वत पर और दूसरे उत्पात में नन्दीश्वर पहुँचते हैं। आते समय एक ही उत्पात में अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं। - मेरु पर्वत पर जाते हुए एक उत्पात में (JUMP) नंदन वन और दूसरे उत्पात में पंडक वन में . पहुँचते हैं। वहाँ चैत्यों को वंदन कर लौटते हुए एक ही उत्पात में अपने स्थान पर आ जाते हैं। विद्याचारण विद्या के प्रभाव से सम्पन्न होते हैं और विद्या का स्वभाव है कि वह बार-बार परिशीलन करने से अधिकाधिक निर्मल बनती है। अत: जाने की अपेक्षा आते समय विद्या का अतिशय बढ़ जाने से विद्याचारंण एक ही उत्पात में अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं। चारणों के भेद१. व्योमचारण - सुखासन या कायोत्सर्ग मुद्रा में पाँवों को चलाये बिना ही आकाश __ में गमन करने वाले। २. जल-चारण - कुआँ, तालाब, बावड़ी, नदी और समुद्र पर जल जीवों की विराधना किये बिना ही पृथ्वी की तरह गमन करने वाले। इनके गमन में पाँवों का व्यापार होता है। ३.जंघाचारण - पृथ्वी पर चार अंगुल ऊपर रहकर चलने वाले। ४. पुष्पचारण - वृक्ष, लता, गुल्म और पुष्पादि का अवलंबन करके जीवों की विराधना से रहित गमन करने वाले। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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