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________________ प्रवचन-सारोद्धार २४९ (३) जातियुत (४) रूपवान (५) संहननयुत (६) धृतियुत (७) अनाशंसी (८) अविकथन (९) अमायी (१०) स्थिरपरिपाटी (११) गृहीतवाक्य (१२) जितपर्षत् (१३) जितनिद्र - जाति संपन्न। विनयादि गुण से संपन्न होते हैं। – सुन्दर शरीरी। उसे देखकर लोक आकर्षित होते हैं। उसका वचन आदेय होता है। 'कुरूप' के प्रति लोगों का आदर भाव प्राय: कम होता है। - शारीरिक शक्ति संपन्न। जिससे प्रवचन-वाचनादि देने में श्रम न लगे। – विशिष्ट मनोबल वाले । जिससे शास्त्रों के सूक्ष्म चिन्तन में मतिभ्रम न हो। - श्रोता से उपदेश के बदले वस्त्र-पात्रादि की आकांक्षा न रखने वाले। - मितभाषी अथवा शिष्यादि के अपराध में बार-बार उपालंभ न देने वाले। - निष्कपट.....सरल। - सतत अभ्यास करने से जिसका श्रुतज्ञान सुदृढ़ हो। - उपादेय वचन, जिसका अल्पवचन भी महान अर्थ वाला लगे। - कितनी भी विराट सभा सामने हो, किंतु क्षुब्ध नहीं बनने वाले। - स्वल्प-निद्रा वाले, जिससे सूत्रार्थ का परावर्तन, चिंतन करने में बाधा न पड़े। - सभी शिष्यों पर समान दृष्टि रखने वाले । देश, काल व भाव को जानने वाले। जिससे स्वयं सुखपूर्वक विचरण कर सके तथा शिष्यों के अभिप्राय को जानकर उन्हें सुखपूर्वक प्रवृत्ति करा सके। – कठिन से कठिन प्रश्न का भी तत्काल सचोट उत्तर देने वाले। - अनेक देशों की भाषा के ज्ञाता, जिससे अनेक देशों में धर्म का प्रचार कर सके तथा भिन्न-भिन्न देशों में उत्पन्न शिष्यों को ज्ञान-दान दे सके। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य— पंचविध आचार के पालन में सतत प्रयत्नशील । जो स्वयं प्रयत्नशील नहीं है, वह दूसरों को प्रेरणा नहीं दे सकता। - सूत्र-अर्थ व तदुभय के ज्ञाता - १. सूत्र का ज्ञाता, अर्थ का अज्ञाता। - २. सूत्र का अज्ञाता, अर्थ का ज्ञाता। (१४) मध्यस्थ (१५-१७) देशकाल भावज्ञ (१८) आसन्नलब्ध प्रतिभा (१९) नानाविध-देशभाषज्ञ (२०-२४) पंचाचार (२५) सूत्रार्थ तदुभयविधिज्ञ चतुर्भंगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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