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प्रवचन - सारोद्धार
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अवगाहना ५०० धनुष की है । उसका तीसरा भाग १६६ धनुष, ६४ अंगुल है । सिद्धिगमन के समय शरीर के इतने भाग में उन प्रदेशों से मुख, पेट आदि के छिद्र भरे जाते हैं अतः शरीर का इतना भाग संकुचित हो जाता है । ५०० धनुष में से १६६ धनुष ६४ अंगुल
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कम करने पर उस समय का शरीरप्रमाण ३३३
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धनुष ही शेष रहता है सिद्धिगमनयोग्य मरुदेवी माता आदि की उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष की कहीं पर सुनी गई है, वह मतांतर
समझना ।। ४८७ ॥
चत्तारि य रयणीओ रयणि तिभागूणिया य बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥४८८ ॥ -गाथार्थ
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भाग न्यून एक हाथ की सिद्धों की मध्यम
सिद्धों की मध्यम अवगाहना – ४ हाथ एवं अवगाहना है ॥ ४८८ ॥
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-विवेचन
४ हाथ व १६ अंगुल सिद्धों की मध्यम अवगाहना है। उदाहरणार्थ भगवान महावीर का शरीर प्रमाण ७ हाथ का है। उसे त्रिभागहीन करने पर ४ हाथ १६ अंगुल शेष रहते हैं । यह अवगाहना उपलक्षण है अतः उत्कृष्ट - जघन्य के बीच की संपूर्ण अवगाहना मध्यम समझना ।
प्रश्न—आगम में सिद्धियोग्य जघन्य अवगाहना ७ हाथ की कही है। इसके अनुसार सिद्धों की जघन्य अवगाहना ४ हाथ व १६ अंगुल की होगी । यहाँ उसे मध्यम अवगाहना माना है । यह कैसे संगत होगा ?
उत्तर - आगम में सिद्धियोग्य जघन्य अवगाहना ७ हाथ की कही वह तीर्थंकर की अपेक्षा से समझना अर्थात् तीर्थकर जघन्य में जघन्य ७ हाथ की अवगाहना वाले ही होते हैं। पर सामान्यकेवली इससे न्यून अवगाहना वाले भी हो सकते हैं। उनकी अपेक्षा से पूर्वोक्त अवगाहना मध्यम ही है । अत: कोई असंगति नहीं है । यहाँ अवगाहना का विचार सामान्य सिद्धों की अपेक्षा से ही है, न कि केवल तीर्थंकरों की अपेक्षा से ॥ ४८८ ॥
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एगा य होइ रयणी अट्ठेव य अंगुलाइ साहीया ।
एसा खलु सिद्धाणं जहण्णओगाहणा भणिया ॥४८९ ॥
_-गाथार्थ
सिद्धों की जघन्य अवगाहना - सिद्धों की जघन्य अवगाहना १ हाथ ८ अंगुल परिमाण कही गई है ।४८९ ॥
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