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प्रवचन-सारोद्धार
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८.छत्रत्रय
- तीनों भुवन के साम्राज्य का सचक, शरत्पूर्णिमा के चन्द्र, मोगरे
का फूल व श्वेत कमल के समान उज्ज्वल, चारों ओर लटकती हुई मोतियों की माला से अत्यन्त मनोहर ऐसे तीन छत्र परमात्मा
के ऊपर देव बनाते हैं। ऋषभदेव परमात्मा से लेकर पार्श्वनाथ भगवान तक अशोक वृक्ष की ऊँचाई तीर्थंकर के शरीर से बारह गुणा व विस्तार एक योजन से कुछ अधिक होता है। कित, भगवान महावीर के समवसरण में उसकी ऊँचाई ३२ धनुष है ।
__ प्रश्न आवश्यकचूर्णि में भगवान महावीर के समवसरण सम्बन्धी चर्चा के प्रसंग में उसकी ऊँचाई उनके शरीर से १२ गुणी कही है-“असोगवरपायवं जिणउच्चत्ताओ बारसगुणं सक्को विउव्वइत्ति" यह बात पूर्वोक्त प्रमाण से कैसे संगत होगी?
उत्तर–आवश्यकचूर्णि में जो ऊँचाई बतायी गयी है, वह मात्र अशोक वृक्ष की ही है, किंतु यहाँ बतायी गयी ऊँचाई शाल वृक्ष सहित अशोक वृक्ष की है। मात्र अशोक वृक्ष की ऊँचाई तो यहाँ भी भगवान महावीर के देह से १२ गुणा ही अधिक है। भगवान महावीर का देहमान ७ हाथ है और उसे १२ से गुणा करने पर २१ धनुष होते हैं उनमें ११ धनुष प्रमाण शाल वृक्ष की ऊँचाई मिलाने से अशोक वृक्ष की ऊँचाई = ३२ धनुष होती है। अशोक वृक्ष के ऊपर शाल वृक्ष के अस्तित्व का प्रमाण समवायांग सूत्र की निम्न पंक्तियाँ हैं
बत्तीस धणुयाई चेइय रुक्खो उ वद्धमाणस्स ।
निच्चोउगो असोगो उच्छन्नो सालरुक्खेणं ॥ अर्थ भगवान महावीर के समवसरण में अशोक वृक्ष की ऊँचाई ३२ धनुष है। सभी ऋतुओं में, पुष्प-फलादि की समृद्धि से सदाबहार रहने वाला अंशोक वृक्ष शाल वृक्ष से उन्नत है।
प्रश्न—जानु-प्रमाण पुष्पों से भरे हुए समवसरण में जीवदयाप्रेमी साधुओं का अवस्थान व गमनागमन कैसे हो सकता है क्योंकि इसमें साक्षात् जीवहिंसा है ?
उत्तर-समवसरण में बरसाये गये फूल देवता के द्वारा विकुर्वित होने से अचित्त हैं। अत: उन पर गमनागमन करने वाले साधुओं को जीवहिंसा का दोष नहीं लगता। ऐसा किसी का मत है किंतु यह अयुक्त है। कारण, समवसरण में मात्र विकुर्वित पुष्प ही नहीं होते किंतु जल-थल में उत्पन्न होने वाले फूल भी होते हैं। आगम में कहा है
बिंटट्ठाई सुरभि जलथलयं दिव्वकुसुमनीहारिं।
पयरिंति समंतेणं दसद्धवण्णं कुसुमवुढेि ।। अर्थ-अधोमुख गुंडवाले, देवों द्वारा विकुर्वित फूलों से भी अधिक शोभावाले, जल व स्थल में उत्पन्न, ऐसे पंचवर्ण वाले पुष्पों की वृष्टि देवता समवसरण में चारों ओर करते हैं।
एक मत ऐसा भी है कि जिस देश में साधु-साध्वी आते-जाते या बैठते हैं, उस देश में देवता
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