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________________ द्वार ३८ १९२ मंतुम्मीलण लेक्खयं विभजणं भंडार दुट्ठासणं, छाणी कप्पड दालि पप्पड वडी विस्सारणं नासणं । अक्कंदं विकहं सरच्छघडणं तेरिच्छसंठावणं, अग्गीसेवण रंधणं परिखणं निस्सीहियाभंजणं ॥४३४ ॥ छत्तो वाणह सत्थ चामर मणोऽणेगत्त-मब्भंगणं, सच्चित्ताणमचाय चायणऽजिए दिट्ठीअ नो अंजली । साडेगुत्तरसंगभंग-मरडं मउलिं सिरोसेहरं, हुड्डा जिंडुहगिड्डियाइरमणं जोहार भंडक्कियं ॥४३५ ॥ रेकारं धरणं रणं विवरणं वालाण पल्हत्थियं, पाओ पायपसारणं पुडपुडी पंकं रओ मेहुणं । जूया जेमण जुज्झ विज्ज वणिज सेज्जं जलं मज्जणं, एमाईयमवज्जकज्जमुजुओ वज्जे जिणिंदालए ॥४३६ ।। आसायणा उ भवभमणकारणं इय विभाविउं जइणो । मलमलिणत्ति न जिणमंदिरंमि निवसंति इय समओ ॥४३७ ॥ दुब्भिगंधमलस्सावि तणुरप्पेस हाणिया। दुहा वायवहो वावि तेणं ठंति न चेइए ॥४३८ ॥ तिन्नि वा कड्ढई जाव, थुइओ त्तिसिलोइया। ताव तत्थ अणुन्नायं, कारणेण परेण उ॥४३९ ॥ -विवेचनआशातना ८४ जिनमंदिर सम्बन्धी आशाताना = आयं + शातना, आय = लाभ, आत्म-कल्याणकारी सम्पत्ति के अमोघकारण भूत ज्ञानादि । शातना = उनका नाश करने वाली आशातना कहलाती है। १. कफ थूकना। २. क्रीड़ा करना। ३. कलह करना। ४. कला अभ्यास करना, परेड मैदान की तरह मंदिर में धनुष आदि का अभ्यास करना। ५. कुल्ला करना। ६. तंबोल आदि खाना। ७. पीक थूकना। ८. गाली गलौच करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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