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________________ द्वार ३५-३६ २९ धनुष २८. धनुष २६ धनुष २५ धनुष २० धनुष १५ धनुष १२ धनप १० धनुष ६५००० वर्ष ६०००० वर्ष ५६००० वर्ष ५५००० वर्ष ३०००० वर्ष १२००० वर्ष १०००० वर्ष ३००० वर्ष १००० वर्ष ७०० वर्ष १०० वर्ष ७२ वर्ष. ।। ४०६-४२९ ॥ ९ हाथ ७ हाथ |३६ द्वार : - तीर्थविच्छेद पुरिमंतिमअट्ठलैंतरेसु तित्थस्स नत्थि वोच्छेओ। मज्झिल्लएसु सत्तसु एत्तियकालं तु वुच्छेओ ॥४३० ॥ चउभागं चउभागो तिन्नि य चउभाग पलियचउभागो। तिण्णेव य चउभागा चउत्थभागो य चउभागो ॥४३१ ॥ __ -गाथार्थकिस तीर्थंकर के अन्तर में तीर्थ विच्छेद हुआ?—प्रथम और अन्तिम आठ अन्तर में तीर्थ का विच्छेद नहीं है। पर मध्य के सात अन्तर में क्रमश: १/४, १/४, ३/४, १/४, ३/४, ३/४, १/४ पल्योपम पर्यन्त तीर्थ का विच्छेद रहा ॥४३०-४३१ ।। -विवेचन२४ जिन के अन्तराल २३ होते हैं जैसे, चार अंगुलियों के ३ अन्तराल होते हैं। • ऋषभदेव से सुविधिनाथ पर्यन्त ८ आन्तरों में तथा शांतिनाथ से महावीर पर्यन्त ९ आन्तरों में तीर्थच्छेद नहीं हुआ। (१) सुविधि और शीतलनाथ के अन्तराल में १/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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