________________
प्रवचन - सारोद्धार
की २, पञ्चसंग्रह की ३, पञ्चासक प्रकरण की ४४, पञ्चवस्तुक प्रकरण की ३०, पिण्डविशुद्धि की १५, पिण्डनियुक्ति की २ प्रज्ञापना की १४, बृहत्संग्रहणी की ७८, बृहकल्पभाष्य की ४४, विशेषणवती की १, भगवती की ४. व्यवहारभाष्य की ४, समवायांग की ३, स्थानांग की १५, संतिकर की ४, सप्ततिशतस्थान की १, संबोधप्रकरण की ८१ आवकवतभंग प्रकरण की ३० एवं प्रकीर्णकों में देविंदत्थओं की ७, गच्छाचार की १, ज्योतिष्करण्डक की ३, तित्थोगाली की ३२, आराधनापताका (प्राचीन अज्ञात आचार्य रचित) की २०, आराधनापताका (वीरभद्राचार्य रचित) की ६ एवं पज्जंताराहणा (पर्यन्त - आराधना) की ४ गाथायें मिलती हैं। यह भी स्पष्ट है कि ये सभी ग्रन्थ नेमिचन्द्रसूरि के प्रवचनसारोद्धार से प्राचीन हैं । इससे यह निश्चित है कि इन गाथाओं की रचना रचनाकार ने स्वयं नहीं की है, अपितु इन्हें पूर्व आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों से यथावत् ले लिया गया है। इस प्रकार लगभग ७०० गाथाएँ अन्य ग्रन्थों से अवतरित है, यद्यपि इनमें लगभग १०० गाथाएँ ऐसी भी हैं, जो अनेक ग्रन्थों में समान रूप से मिलती हैं। फिर भी लगभग ६०० गाथाएँ तो अन्य ग्रन्थों से अवतरित हैं ही।
१९
मात्र इतना ही नहीं, अभी भी अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनकी गाथा सूचियों के साथ प्रवचनसारोद्धार की गाथाओं का तुलनात्मक अध्ययन नहीं हुआ है । अंगविज्जा जैसे कुछ प्राचीन ग्रन्थों में और भी समान गाथायें मलिने की संभावना है। इससे ऐसा लगता है कि प्रवचनसारोद्धार की लगभग आधी गाथायें तो अन्य ग्रन्थों से संकलित हैं। ऐसी स्थिति में नेमिचन्द्रसूरि को इसका ग्रन्थकार या कर्त्ता मानने पर अनेक विपत्तियाँ सामने आती हैं, किन्तु जब तक सम्पूर्ण ग्रन्थ की सभी गाथायें संकलित न हों तब तक अवशिष्ट गाथाओं के रचनाकार तो नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) को ही मानना होगा। प्राचीन काल में ग्रन्थ रचना करते समय आगम अथवा प्राचीन आचार्यों की कृतियों से बिना नाम निर्देश के गाथायें उद्धृत कर लेने की प्रवृत्ति रही है और इस प्रकार की प्रवृत्ति श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के रचनाकारों में पाई जाती है । उदाहरण के रूप में मूलाचार में उत्तराध्ययनसूत्र, आवश्यक निर्युक्ति, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान आदि अनेक ग्रन्थों की २०० से अधिक गाथायें उद्धृत हैं । यही स्थिति भगवत- आराधना एवं आचार्य कुन्दकुन्द के नियमसार आदि ग्रन्थों की भी है ।
नियमसार, षट्प्राभृत आदि की अनेक गाथायें श्वेताम्बर आगमों, प्रकीर्णकों, नियुक्तियों एवं भाष्यों आदि में समान रूप से मिलती हैं। श्वेताम्बर मान्य आगमों में भी संग्रहणी सूत्र आदि की एवं प्रकीर्णकों में एक दूसरे की अनेक गाथायें अवतरित की गई हैं । इस प्रकार अपने ग्रन्थों में अन्य ग्रन्थों से गाथायें अवतरित करने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है I
ऐसी स्थिति में जब दूसरे- दूसरे आचार्यों को तत् तत् ग्रन्थ का रचनाकार मान लिया जाता है तो फिर नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) को प्रस्तुत कृति का कर्त्ता मान लेने पर कौनसी आपत्ति है ? पुनः १६०० गाथाओं के इस ग्रन्थ में यदि ६०० गाथायें अन्य कर्तृक हैं भी तो शेष १००० गाथाओं के रचनाकार तो नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) हैं ही। प्रवचनसारोद्धार की कौनसी गाथा किस ग्रन्थ में किस स्थान पर मिलती है अथवा अन्य ग्रन्थों की कौनसी गाथाएँ प्रवचनसारोद्धार के किस क्रम पर हैं इसकी सूची परिशिष्ट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org