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प्रवचन - सारोद्धार
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चारित्राचार के ८ अतिचार - प्रणिधान और योगपूर्वक पाँच समिति तथा तीन गुप्ति का पालन करना चारित्राचार है । इससे विपरीत आचरण करना चारित्राचार के अतिचार हैं ।। २६९ ।।
तपाचार के १२ अतिचार- १. अनशन, २. ऊनोदरी, ३. वृत्ति संक्षेप, ४. रसत्याग, ५. कायक्लेश और ६. संलीनता - ये छ: बाह्य तप हैं । १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावच्च, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. कायोत्सर्ग - ये छ: आभ्यन्तर तप हैं। पूर्वोक्त बारह प्रकार के तप का उचित पालन न करना तपाचार के अतिचार हैं।
वीर्याचार के ३ तीन अतिचार - मन-वचन और काया की दुष्प्रवृत्ति - ये वीर्याचार के तीन अतिचार हैं ।। २७० - २७२ ।।
सम्यक्त्व के ५ अतिचार- १. शंका, २. कांक्षा, ३. विचिकित्सा, ४. अन्यतीर्थ प्रशंसा, ५. परतीर्थी की सेवा - ये पाँच सम्यक्त्व के अतिचार हैं ।। २७३ ।।
प्रथमव्रत के अतिचार—१. मनुष्य व तिर्यंचों के भोजन-पानी का अन्तराय करना, २ . बन्धन से बाँधना, ३. वध करना, ४ अतिभार लादना ५. त्वचादि का छेदन करना-ये पाँच प्रथमव्रत के अतिचार हैं || २७४ ||
द्वितीयव्रत के ५ अतिचार - १. सहसाकलंक दान, २. रहस्यदूषण, ३. स्त्री का मंत्र भेद ४. कूटलेखकरण, ५. मृषोपदेश - ये पाँच द्वितीयव्रत के अतिचार हैं ।। २७५ ।।
तृतीयव्रत के ५ अतिचार - १. चौरानीत, २. चौर प्रयोग, ३. झूठा माप-तौल, ४. शत्रु के साथ व्यवहार, ५. मिलावट करना - ये पाँच तृतीयव्रत के अतिचार हैं ।। २७६ ।।
चतुर्थव्रत के ५ अतिचार - ९. इत्वरपरिगृहीतागमन, २. अपरिगृहीतागमन, ३. तीव्रकामाभिलाष, ४. अनंगक्रीड़ा तथा ५. पर- विवाहकरण - ये पाँच चतुर्थव्रत के अतिचार हैं ।। २७७ ||
पंचमव्रत के ५ अतिचार- १. क्षेत्र और घर एकत्रित करना, २ . अतिरिक्त सोना-चाँदी स्वजनों को देना, ३. धन-धान्य आदि दूसरों के घर रखना, ४. द्विपद-चतुष्पद (स्त्री- गाय-भैंस आदि) को गर्भधारण करवाना, ५. अल्प मूल्य वाली वस्तु को बहुमूल्य वाली बनाकर वस्तु की संख्या में वृद्धि न होने देना - ये पंचमव्रत के पाँच अतिचार हैं ।। २७८- २७९ ।।
षष्ठव्रत के ५ अतिचार- १-३ उल्लंघन करना - ये दिशाव्रत के तीन क्षेत्रवृद्धि करना - ये पाँच दिशाव्रत के
तिर्यक्, अधो और ऊर्ध्व दिशा में गमनागमन के नियम का अतिचार हैं । ४. दिशा परिमाण की विस्मृति होना तथा ५. अतिचार हैं ।। २८० ।।
सप्तमव्रत के ५ अतिचार - १. अपक्वाहार, २. दुष्पक्वाहार, ३ सचित्त आहार, ४. सचित प्रतिबद्ध आहार तथा ५ तुच्छौषधि भक्षण - ये पाँच सप्तमव्रत के अतिचार हैं ।। २८१ ॥
अष्टमव्रत के ५ अतिचार– १. कौत्कुच्य २. मौखरिक ३. भोग-उपभोगातिरेक ४. कन्दर्प एवं ५. युक्ताधिकरण - ये पाँच अनर्थदण्ड के अतिचार हैं ।। २८२ ॥
नवमव्रत के ५ अतिचार - १-३. मन-वचन काया का दुष्प्रणिधान, ४. सामायिक की विस्मृति तथा ५. अनवस्थितकरण-ये पाँच सामायिकव्रत के अतिचार हैं ॥ २८३ ॥
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