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द्वार ४
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मच्छियकुत्तियभामरभेयं च महुं तिहा होई ॥ २२० ॥ जलथलखहयरमंसं चम्मं वस सोणियं तिभेयं च । आइल्ल तिण्णि चलचल ओगाहिमगं च विगईओ ॥ २२१ ॥ खीरदहीवियडाणं चत्तारि उ अंगुलाणि संसटुं। फाणियतिल्लघयाणं अंगुलमेगं तु संसट्ठ ॥ २२२ ॥ महुपुग्गलरसयाणं अद्धंगुलयं तु होइ संसटुं। गुलपुग्गलनवणीए अद्दामलयं तु संसटुं ॥ २२३ ॥ विगई विगइगयाणि य अणंतकायाणि वज्जवत्थूणि। दस तीसं बत्तीसं बावीसं सुणह वन्नेमि ॥ २२४ ॥ दुद्ध दहि तिल नवणीय घय गुड महु मंस मज्ज पक्कं च । पण चउ चउ चउ चउ दुगतिग तिगदुग एगपडिभिन्नं ॥ २२५ ॥ दव्वहया विगइगयं विगई पुण तेण तं हयं दव्वं । उद्धरिए तत्तंमि य उक्किट्ठदव्वं इमं अन्ने ॥ २२६ ॥ अह पेया दुद्धट्टी दुद्धवलेही य दुद्धसाडी य। पंच य विगइगयाइं दुद्धंमि य खीरिसहियाइं ॥ २२७ ॥ अंबिल-जयंमि दुद्धे दुद्धट्ठी दक्खमीसरद्धंमि । पयसाडी तह तंडुल-चुण्णय-सिद्धमि अवलेही ॥ २२८ ॥ दहिए विगइ-गयाइं घोलवडां घोल सिहरिणि करंबो। लवण-कण-दहियमहियं संगरि-गाइंमि अप्पडिए ॥ २२९ ॥ पक्कघयं घयकिट्टी पक्कोसहि उवरि तरिय सप्पिं च । निब्भंजणवीसंदणगाई घय-विगइविगइ-गया ॥ २३० ॥ तेल्लमली तिलकुट्टी दद्धं तेल्लं तहो सहोव्वरियं । लक्खाइदव्वपक्कं तेल्लं तेल्लंमि पंचेव ॥ २३१ ॥ अद्धकड्डिइक्खुरसो गुलपाणीयं च सक्करा-खंडं । पायगुलं च गुलविगई विगइगयाइं च पंचेव ॥ २३२ ॥ एगं एगस्सुवरि तिन्नोवरि बीयगं च जं पक्कं ।
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