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६. शम
ज्ञानीजनों को शान्ति ही होती है । निर्मोही मोही ऐसी आत्मा को नहीं होते हैं विषय विकार और नहीं होते है विकल्प | उसे इन से कोई मतलब नहीं होता । ज्यादा समय आत्मा की स्वभावदशा में तल्लीन रहनेवाले जीवात्मा को ज्ञान का सही फल मिल जाता है ।
कर्मजन्य विषमता ज्ञानीजनों के ध्यान में कभी नहीं आती है। उन्हें समस्त जीवसृष्टि प्राय: ब्रह्मरुप में ही दिखती है । ऐसी सभी आत्माएं निरन्तर शमरस का अमृतपान कर कृतार्थ होती हैं ।
आइए, शम और प्रशम के वास्तविक मूल्यांकन और उसके प्रभाव से परिचित हो जायें। यकीन कीजिए, इससे जीवनमार्ग को एक नयी दिशा मिलेगी, अपने आप को जानने की और उसके प्रभाव को समझने की !
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