________________
४. अमोह
तन और मन स्थिर बन, आत्मभाव में पूर्णरूप से लयलीन बन गये तो समझ लो मोह का नाश...मोह की मृत्यु निःसंदिग्ध है। __मन-वचन और काया को स्थिरता में से अ-मोह (निर्मोही-वृत्ति) सहज पैदा होता है ! अतः मोह के मायावी आक्रमणों की तिलमात्र भी चिता न करो !
प्रस्तुत अष्टक में से तुम्हें निर्मोही बनने का अद्भुत उपाय मिलेगा और तुम्हारी प्रसन्नता की अवधि न रहेगी। तुम्हारा दिल मारे खुशी के बाग-बाग हो उठेगा। इसमें तुम्हें अमूढ बन, सिर्फ ज्ञाता और द्रष्टा बनकर, जिदगी बसर करने का, अपूर्व आनंद प्राप्त करने का एक नया अद्भुत मार्ग दिखायी देगा !
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org