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________________ ६० ] [ ज्ञानसार (१७) दसविध वैयावच्च : आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्षक, कुल, गुण, संघ और साधर्मिक आदि की १३ प्रकार से वैयावच्च करनी चाहिए । (१) भोजन (२) पानी (३) आसन (४) उपकरण-पडिलेहण (५) पाद-प्रमार्जन (६) वस्त्र-प्रदान (७) औषध प्रदान (८) मार्ग में सहायता (६) दुष्टों से रक्षण (१०) दंड (डंडा) ग्रहण (११) मात्रक-अर्पण (१२) संज्ञामात्रक अर्पण, और (१३) श्लेष्ममात्रक अर्पण । (१८) अपूर्व ज्ञानग्रहण : नया नया ज्ञान प्राप्त करना । (१६) श्रुतभक्ति : ज्ञानभक्ति । (२०) प्रवचनप्रभावना : जिनोक्त तत्त्वों का उपदेश आदि देना । पहले और अंतिम तीर्थंकर ने (ऋषभदेव और महावीर स्वामी) इन बीस स्थानकों की आराधना की थी। मध्य के २२ तीर्थंकरों में से किसी ने दो, किसी ने तीन....किसी ने सब स्थानकों की आराधना की थी। (- प्रवचनसारोद्धार : द्वार : १० के अनुसार ) बीस स्थानक तप की आराधना की प्रचलित विधि निम्न प्रकार है। • एक एक स्थानक की एक एक ओली की जाती है । एक ओली २० अट्टम की होती है । अट्टम (३ उपवास) करने की शक्ति न हो तो २० छठु (दो उपवास) करके ओली हो सकती है । अगर यह भी शक्ति न हो तो २० उपवास, २० आयंबिल या २० एकासणा करके भी ओली हो सकती है । - एक ओली ६ महिनों में पूर्ण करनी चाहिए। . . ओली की आराधना के दिन पौषधव्रत करना चाहिए । सब पदों की आराधना में पौषधव्रत नहीं कर सकते हैं तो पहले सात पद की ओली में तो पौषधव्रत करना ही चाहिए । पौषध की अनुकूलता न हो तो देशावगासिक व्रत (८ सामायिक और प्रतिक्रमण) करें । - ओली के दिनों में प्रतिक्रमण, देव वंदन, ब्रह्मचर्य पालन, भूमिशयन आदि नियमों का पालन करना चाहिए । हिंसामय व्यापार का त्याग, असत्य और चोरी का त्याग....प्रमाद का त्याग करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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