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बीस स्थानक तप ]
[ ५९ नीचे के सात स्थानों में अनुराग, गुण-स्तुति और भक्ति-सेवा, ये आराधना करनी होती है ।
(१) तीर्थंकर : अष्ट प्रातिहार्य की शोभा के योग्य । (२) सिद्ध : सर्व कर्मरहित, परम सुखी और कृत-कृत्य । (३) प्रवचन : द्वादशांगी और चतुर्विध संघ ।
(४) गुरु : यथावस्थित शास्त्रार्थ कहने वाले । धर्म-उपदेश आदि देने वाले । (५) स्थविर : वयस्थविर (६० वर्ष से ज्यादा)
श्रुत स्थविर (समवायांग तक के ज्ञाता)
पर्याय स्थविर (२० वर्ष का दीक्षित) (६) बहुश्रुत : जो महान ज्ञानी हो । (७) तपस्वी : अनेक प्रकार के तप करने वाले तपस्वी मुनि । (८) निरंतर ज्ञानोपयोग : हर समय ज्ञान का उपयोग । (6) दर्शन : सम्यग दर्शन । (१०) विनय : ज्ञान आदि का विनय । (११) आवश्यक : प्रतिक्रमणादि दैनिक धर्म क्रिया । (१२-१३) शील-व्रत : शील यानी उत्तर गुण, व्रत यानी मूलगुण ।
(१४) क्षण-लव-समाधि : क्षण, लव आदि काल के नाम हैं । अमुक समय निरंतर संवेगभावित होकर ध्यान करना ।
(१५) त्याग समाधि : त्याग दो प्रकार के हैं; द्रव्य त्याग और भाव त्याग ।
___ अयोग्य आहार, उपधि आदि का त्याग और सुयोग्य आहार-उपधि आदि साधुजनों को वितरण । यह द्रव्य त्याग है । क्रोध आदि अशुभ भावों का त्याग और ज्ञान आदि शुभ भावों का साधुजनों को वितरणयह भावत्याग है । इन दोनों तरह के त्याग में शक्ति अनुसार निरंतर प्रवृत्ति करनी चाहिए।
(१६) तप समाधि : बाह्य-आभ्यंतर बारह प्रकार के तप में शक्ति अनुसार प्रवृत्ति करनी चाहिए ।
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