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________________ पंचास्तिकाय भावपरिज्ञा का विशेष स्पष्टीकरण करते हुए श्री शीलांकाचार्यजी ने कहा है भावपरिज्ञा :-'आगम' से ज्ञपरिज्ञा का ज्ञाता और उसमें उपयोग वाला आत्मा स्वयम् । 'नो आगम' से ज्ञानक्रिया रूप इस अध्ययन अथवा ज्ञपरिज्ञा का ज्ञाता और अनुपयुक्त । प्रत्याख्यानपरिज्ञा भी इसी प्रकार समझना । विशेष में, 'नो आगम' से प्राणातिपातनिवृत्ति त्रिविध-विविध समझने की है । १३. पंचास्तिकाय .. पाँच द्रव्यों का विश्व है। विश्व का ज्ञान करने के लिए पाँच द्रव्यों का ज्ञान करना पड़ता है । विश्व = पाँच द्रव्य 12 3'द्रव्य' परिभाषा १. 'सत्तालक्षणम् द्रव्यम्'-सत्ता जिसका लक्षण है, उसे द्रव्य कहते हैं । यह परिभाषा द्रव्यार्थिक नय से करने में आई है। २. 'उत्पादव्ययध्रौव्यसंयुक्तं द्रव्यम्'-जो उत्पत्ति, विनाश तथा ध्रुवता से संयुक्त हो वह द्रव्य कहलाता है । यह व्याख्या पर्यायाथिक नय से करने में आई है । ३. 'गुणपर्यायवद द्रव्यम्' गुण-पर्याय का जो आधार है वह द्रव्य है। श्री तत्त्वार्थ सूत्र में भी यह व्याख्या की गई है। (अध्याय ५, सूत्र ३७) प्रथम व्याख्या के आधार पर बौद्धदर्शन की मान्यता का खंडन हो जाता है । दूसरी व तीसरी व्याख्या के आधार पर सांख्य व नैयायिक दर्शन का निरसन हो जाता है । 1'जगच्छब्देन सकलधर्माधर्माकाशपुद्गलास्तिकायपरिग्रहः ।' -श्री नन्दीसूत्रटीकायाम् 2 एते धर्मादयश्चत्वारो जीवाश्च पञ्चद्रव्याणि च भवन्ति । -तत्त्वार्थ-भाष्ये, अ० ५ दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्ययधुवत्तसंजुत्तं । गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णं ति सव्वण्हू ॥१०॥ —पचास्तिकपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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