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ज्ञानसार अनादिनिधन त्रिकालावस्थायी द्रव्य की उत्पत्ति या विनाश नहीं होता । उत्पत्ति और विनाश द्रव्य के पर्याय हैं । जैसे सोने के कड़े को तोड़कर उसका हार बनाया जाता है, उसमें सोने का नाश नहीं होता, परंतु सोने का जो कड़े के रूप में पर्याय (अवस्था) है, उसका नाश हो जाता है । उसी तरह सोने की उत्पत्ति नहीं होती परन्तु हाररूप पर्याय उत्पन्न हो जाता है । सोना (द्रव्य) तो कायम रहता है।
___1 पर्याय से भिन्न द्रव्य नहीं और द्रव्य से भिन्न पर्याय नहीं । दोनों अनन्यभूत हैं। अर्थात् पर्याय की उत्पत्ति-विनाश, द्रव्य की उत्पत्ति और द्रव्य का नाश कहा जाता है । पंचास्तिकाय
धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशातिकाय जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय 3 'अस्ति' अर्थात् प्रदेश और 'काय' यानी समूह-अस्तिकाय है। धर्मास्तिकाय स्वरूप :
धर्मास्तिकाय रस, वर्ण, गंध, शब्द और स्पर्श से रहित है । अतः वह अमूर्त है । अवस्थित है, अरूपी है, निष्क्रिय है। असंख्य प्रदेशात्मक है। लोकाकाशव्यापी है, अनादि-अनंत रुप से विस्तीर्ण है। धर्मास्तिकाय के प्रदेश सांतर नहीं परन्तु निरन्तर हैं । 1 दव्वं पज्जवविउयं दव्वविउत्ता य पज्जवा णथि । उप्पायटिइभंगा हदि दवियलक्खणं एयं ।।१२।।।
-सम्मति-तर्क तुलना-पज्जयविजुदं दव्वं दव्व विजुत्ता य पज्जवा पत्थि । दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परुविति ॥
---पंचास्तिकाय-प्रकरणे 2 पंचास्तिकाया धर्माऽधर्माऽऽकाश-पुद्गलजीवाख्याः ।
-तत्वार्थ-टीकायां, सिद्धसेनगणि । 3 अस्तयः प्रदेशाः तेषां कायः संघातः अस्तिकायः
--अनुयोगद्वारसूत्रे, हेमचन्द्रसूरि
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