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ज्ञानसार
नय पर्याय शब्दों की भिन्नार्थता मानता है। शब्द के व्युत्पत्ति-अर्थ को ही मानता है । 'पर्यायशब्देषु निरूक्तिभेदेन भिन्नमर्थं समभिरोहन समभिरूढः ।'
___-जैन तर्कभाषा यह नय पर्यायभेद से अर्थभेद मानता है । पर्याय शब्दों के अर्थ में रहे हुए अभेद की उपेक्षा करता है । इन्द्र, शक्र, पुरन्दर वगैरह शब्दों का अर्थ भिन्न-भिन्न करता है। उदाहरण : इन्दनादिन्द्रः, शकनाच्छनः, पूर्दारणात् पुरन्दरः ।
1 एकान्ततः पर्याय-शब्दों के अर्थ में रहे हुए अभेद की उपेक्षा करने वाला नय मिथ्यानय, नयाभास कहलाता है । एवंभूत ____ शब्दानां स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाविष्टमर्थं वाच्यत्वेनाभ्युपगच्छन्नेवम्भतः।'
-जैन तर्कभाषा किसी भी शब्द के जिस व्युत्पत्ति-अर्थ के अनुसार क्रिया में परिणत पदार्थ हो वही उस शब्द से वाच्य बनता है ।
- उदाहरण : गौः [गाय] शब्द का प्रयोग उस समय ही सत्य कहा जा सकता है जब कि वह गमनक्रिया में प्रवृत्त हो, क्योंकि गौः शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ है-'गच्छतीति गौः ।' गाय खड़ी हो कि बैठी हो, तब उसके लिये गौः | गाय] शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता, ऐसा यह नय मानता है।
इस प्रकार यह नय क्रिया में अप्रवृत्त वस्तु को शब्द से अवाच्य मानता होने से मिथ्यादृष्टि है । 'क्रियानाविष्टं वस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपन्नेवंभूताभासः ।'
__-जैन तर्कभाषा 'क्रिया में अप्रवृत्त वस्तु शब्दवाच्य नहीं है, ऐसा कहने वाला यह नय ‘एवंभूताभास' है ।'
इस प्रकार सात नयों का स्वरूप संक्षेप से प्रस्तुत किया गया है। विशेष जिज्ञासावाले मनुष्य को गुरुगम से जिज्ञासा पूर्ण करनी चाहिये । 1पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षीकुर्वाणः समभिरुढ़ाभासः । —जैन तर्कभाषा
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