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उपसंहार
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में) विवेकरुपी पुष्पमालायें सुशोभित हैं । अग्रभाग में अध्यात्मरुप अमृत से छलकाता काम-कुभ रखा हुआ है । और इस तरह पूर्णानंद से भरपूर आत्मा नगर-प्रवेश करता है, तब अपना स्वयं का महा
मंगल किया है। विवेचन : इस 'ज्ञानसार नगर' में जिस पूर्णानन्दी आत्मा ने प्रवेश किया, उसका कल्याण हो गया !
इस नगर की भूमि पवित्र भावों के गोबर से पोती हुई है ! सर्वत्र समभाव के शीतल जल का छिडकाव किया गया है ! नगर के विशाल राजमार्ग विवेकरूपी पुष्पमालाएँ, तोरणों से सुशोभित हैं ! और महत्वपूर्ण स्थानों पर अध्यात्मात से छलकते काम-कुंभ रखे गये हैं !
कैसा भव्य और रमणीय नगर है ! आँखें थकती नहीं उसका मनोहर और मांगलिक स्वरुप देख-देख कर ! ऐसे विलक्षण नगर में हर कोई (जीव) प्रवेश नहीं कर सकता, बल्कि बहुत थोड़े कुछ लोग ही प्रवेश कर सकते हैं ! यदि इन थोड़े लोगों में हमें प्रवेश मिल गया, तो समझ लिजीए कि हमारा तो 'सर्व मंगल मांगल्यम्' हो गया !
पूर्णानन्दी आत्मा ही 'ज्ञानसार' नगर में प्रवेश पा सकता है ! पूर्णता के आनन्द-हेतु छटपटाता उद्विग्न जीव ही हमेशा ऐसे नगर की खोज में रहता है । इस तरह ग्रन्थकार महर्षि हमें 'ज्ञानसार' नगर का अनूठा दर्शन कराते हैं....इस में प्रवेश कर हम भी कृतकृत्य बनें।
गच्छे श्रीविजयादिदेवसुगुरोः स्वच्छे गुणानां गणैः प्रौढि प्रौढिमधाम्नि जीतविजयप्राज्ञाः परामैयरुः । तत्सातीर्थ्यभतां नयादिविजयप्राज्ञोत्तमानां शिशोः
श्रीमन्यायविशारदस्य कृतिनामेषा कृतिः प्रीतये ।। श्रर्थ : सद्गुरु श्री विजयदेवसूरि के गुणसमूह से पवित्र एवं महान् गच्छ में
जितविजय नामके अत्यंत विद्वान् और महिमाशाली पुरुष हुए। उन के गुरुभाई नयविजय पंडित के सुशिष्य श्रीमद् न्यायविशारद [यशोविजयजी उपाध्याय] द्वारा रचित यह कृति, महाभाग्यशाली
पुरुषों की प्रीति के लिए सिद्ध हो । विवेचन : ग्रन्थकार अपनी गुरु-परंपरा का वर्णन करते हैं !
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