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ज्ञानसार
___श्री विजयदेवसूरि के गुण-समूह से अलंकृत विशाल पवित्र गच्छ में प्रकांड पंडित जीतविजयजी नामक अत्यंत प्रतिभा के धनी महात्मा पुरुष हुए । उन के गुरु भाई श्री नयविजयजी नामक मुनिश्रेष्ठ थे ।
उन्हीं श्री नयविजयजी गुरुदेव के, ग्रन्थकार उपाध्याय श्री यशोविजयजी शिष्य थे।
__ ग्रन्थकार ने अपनी कृति में स्वयं का नाम-निर्देश न करते हुए काशी में प्राप्त 'न्याय विशारद' उपाधि का उल्लेख किया है। अपनी इस कृति के लिए उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा है :
'प्रस्तुत कृति महाभाग्यशाली और पुण्यशाली पुरुषों के लिए प्रीति कारक सिद्ध हो ।' 'ज्ञानसार' के अध्ययन, मनन और चिंतन से असीम प्रीति और आनन्द प्राप्त करने वाली महा भाग्यवंत आत्माएँ हैं ।
___'ज्ञानसार' में से ज्ञानानन्द और पूर्णानन्द प्राप्त करने का सौभाग्य समस्त जीवों को प्राप्त हो ।
-संपूर्ण
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