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३२. सर्वनयाश्रय
जब एकाध विद्वान्, किसी एक नयवाद की डोर पकड़, उसे समझाने के लिए आम जनता के बीच में आता है, तब किस प्रकार का कोलाहल, शोर-गुल और वाद-विवाद का समाँ बँध जाता है ? विश्व के हर क्षेत्र में एकान्तवाद अभिशाप स्वरुप ही सिद्ध हुआ है ।
यहाँ पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने अनेकान्तवाद का प्रतिपादन किया है । लोगों को अनेकान्त दृष्टि प्रदान की है। किसी एक व्यक्ति, वस्तु अथवा प्रसंग को अनेकान्त दृष्टि से देखने-परखने की अद्भुत कला सिखायी है । इसे प्राप्त कर मन में उठती सभी शंका-कुशंकाओं का, प्रश्नों का समाधान ढूंढा जाय, तो कैसी अपूर्व शांति मिलेगी !
प्रस्तुत अन्तिम अध्याय अत्यंत महत्वपूर्ण है । गंभीरता के साथ उस का परिशीलन करना न चूकना ।
3625250 2292 33 34 35 352429 36 35 28353625 828280995352 34353635 353 02525252525
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