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________________ ४३० ज्ञानसार आवश्यक है । स्वरूपहिंसा से सम्पन्न कर्म-बंधन नहीं के बराबर होते हैं । द्रव्य पूजा के कारण उत्पन्न शुभ भावों से वे पापकर्म नष्ट हो जाते हैं । गृहस्थ शुद्ध ज्ञानदशा में रमण नहीं कर सकता है, अत: उसके लिए द्रव्य-क्रिया करना अनिवार्य है । द्रव्य-पूजा के माध्यम से परमात्मा के प्रति जीव का प्रशस्त-राग का अनुबंधन होता है । साथ ही उक्त रागानुबन्धन से प्रेरित हो, परमात्मा की प्राज्ञा का पालन करने की भक्ति प्राप्त होती है और शक्ति बढने पर ; क्रमश: वृद्धि होने पर वह गृहस्थ-जीवन का परित्याग कर ' मुनि-जीवन का स्वीकार कर, सेता है । तब उसके लिए द्रव्य क्रिया : आवश्यक नहीं होती, जिसमे स्वरूपहिंसा सम्भव है। एक प्रवासी ! गर्मी का मोसम ! मध्याहन का समय ! सतत प्रवास से श्रमित । मारे प्यास के गला सूख रहा है । भीषण प्रातप से अंग-प्रत्यंगें झलस रहा है ! माकूल-व्याकल हो चारों ओर दृष्टिपात करता है । नजर पहुंचे वहां तक न कोई पेड़ है, ना ही प्याऊ अथवा कुआँ ! मन्थर गति से आगे बढ़ता है । यकायक नदी दिखायी देती है । प्रवासी राहत की सांस लेता है । लेकिन नजदीक जाने पर वह भी सूखी नजर आती है । वह मन ही मन विचार करता है : "थक गया हूँ ! पानी का कहीं ठोर-ठिकाना नहीं । प्यास को वेदना सही नहीं जाती ! यह नदी भी सूखी है । अगर गड्ढा खोदूं तो पानी मिल भी जाए , लेकिन थकावट के कारण इतनी शक्ति नहीं रही। साथ ही गड्ढा खोदते हुए वस्त्र भी गन्दे हो जाएंगे.... तब क्या करूँ ?" कुछ क्षरण वह शून्यमनस्क खड़ा रहा । विचार-तरंगे फिर उठने लगी। "भले थक गया हैं, वस्त्र मलिन हो जाएंगे, लेकिन गडढा खोदने के पश्चात जब पानी मिलेगा तब मेरी प्यास बुझ जाएगी, राहत की सांस ले सकू गा; शान्ति का अनुभव होगा और मलिन वस्त्र स्वच्छ भी कर सकुगा ।" सहसा उसमें अदम्य उत्साह का संचार हुआ ! उसने गड्ढा खोदा! थोड़ी-सी मेहनत से ठंडा पानी मिल गया ! जी भर कर पानी पिया , अंग-प्रत्यंगपर पानी छिड़क कर राहत की सांस ली , दिल खोल कर नहाया और कपड़े धोये ।.... ठीक वैसे ही जिनपूजा करते हुए स्वरूपहिंसा के कारण भले ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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