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________________ ३९७ अनुभव विवेचन : मान लो कि गह-कार्य में सदैव खोयी भारतीय नारी को अनुभव-ज्ञान का विज्ञान न समझाते हो, इस तरह पूज्य उपाध्यायजी महाराज रसोईघर के उपकरणों को माध्यम बनाकर समझाने बैठ जाते चल्हे पर उफनती खीर को देखो ! उस में कलछी डाल कर तुम खीर को अच्छी तरह से हिला सकते हो । उसे जलने नहीं देते.... लेकिन कलछी से खीर हिलाने मात्र से तुम उस का स्वाद ले सकते हो ? नहीं, यह असंभव है। ___ खीर का स्वाद लेने के लिए तो उसे जीभ पर रखना पड़ता है ! फलतः जीभ और खीर का संयोग होता है और बड़े चाव से चटकारे लेते हैं, तब उसकी रसानुभूति होती है ! -शास्त्र खीर का भोजन है, -कल्पना (ताकिकता) कलछी है, -और अनुभव जीभ है ! उपाध्यायजी महाराज फरमाते हैं : "तार्किक बुद्धि से शास्त्रों को उलटते-पुलटते रहोगे, उससे कोई शास्त्रज्ञान का रसास्वाद अनुभव नहीं कर सकोगे। इतना ही नहीं, बल्कि शास्त्रों को तार्किकता के पडले में तौलने में ही जीवन पूर्ण हो गया तो अंतिम समय खेद होगा कि "सचमुच मैं दुर्भागी-अभागा हूँ कि कड़ी महेनत कर खीर पकायी, लेकिन उसका स्वाद लूटने का मौका ही न मिला !" खीर इसलिये पकायी जाती है कि उस का यथेष्ट उपभोग ले सकें। जी भर कर रसास्वादन कर सकें। कलछी तो केवल साधन है खीर पकाने का। एक साधन के रुप में वह अवश्य महत्वपूर्ण है ! उक्त साधन से जब खीर तैयार हो जाएँ, हमारा पूरा लक्ष्य खीर की पोर हो, ना कि कलछी की और । यहाँ तार्किकता की मर्यादा स्पष्ट कर दी गयी है। शास्त्रों का अर्थनिर्णय हो गया कि भोजन तैयार हो गया ! तत्पश्चात् कलछी को एक ओर रख देना चाहिए। तार्किकता के लिए कोई स्थान नहीं ! फिर तो अर्थनिर्णय का रसास्वादन करने हेतु उसे अनुभव-जीभ पर रख दो, और चटकारे लेते हुए उस का यथेष्ट रसास्वादन करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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