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________________ ३६८ ज्ञानसार ग्रंथकार ने यहाँ शास्त्रज्ञान एवं 'अनुभव' का पारस्परिक संबन्ध बताया है । खीर के बिना मनुष्य उसके रसास्वादन की मोज नहीं लूट सकता । जीभ कितनी भी अच्छी हो, लेकिन यदि खीर ही न हो तो ? ठीक उसी तरह शास्त्रज्ञान के अभाव में अनुभव की जीभ भला क्या कर सकती है ? प्रत: शास्त्रजान की खीर पकाना नितांत आवश्यक है । उसकी उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा । खीर की तरह कलछी का भी अपना महत्व है। खीर की हंडिया को चुल्हे पर रख देने से ही खीर तैयार नहीं होती । बल्कि वह जल जाती है और बेस्वाद भी हो जाती है । अतः उसे कलछी से निरंतर हिलाते रहना चाहिए। ठीक उसी तरह, बिना तार्किकता से शास्त्र - ज्ञान की खीर पका नहीं सकते । जब तक शास्त्रार्थ के ज्ञान की खीर नहीं पकती तब तक तार्किकता की कलछी से उसे लगातार हिलाते रहना चाहिए और खीर के पकते ही, कलछी को एक ओर रख दो ! तब जीभ को तैयार रखो... रसास्वादन और रसानुभूति के लिए ! घरेलु भाषा के माध्यम से उपाध्यायजी ने 'अनुभव की कैसी स्पष्ट परिभाषा हमारे सामने रख दी है ! उन्हों ने बुद्धिशाली पंडितों के लिए उनकी बुद्धि की मर्यादा स्पष्ट कर दी है और बुद्धि तथा तर्क की अवहेलना करने वालों के लिए उसकी अनिवार्यता समझा दी है । ठीक वैसे ही सिर्फ अनुभव के गीत गाने वालों को शास्त्र और उसके रहस्य प्राप्त करने की बात गले उतार दी ! जब कि आजीवन शास्त्रों के बोझ को सर पर ढोकर, विद्वत्ता और कुशाग्र बुद्धि में ही कृतकृत्यता समझने वालों को अनुभव की सही दिशा इंगित कर दी। इस तरह सब का सुन्दर और मोहक समन्वय साध कर न जाने कैसा अप्रतिम अव्वल दर्जे का आत्मविज्ञान प्रगट किया है ! चलिए, हम भी जीवन के पाकगृह में चलकर चूल्हे पर शास्त्रज्ञान की खीर पकाये.... तार्किक बुद्धि की कलछी से खीर पका कर अनुभवजिह्वा द्वारा उसका रसास्वादन कर, जीवन को सार्थक और सुन्दर बनायें | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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