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________________ ज्ञानसार जिस इतिहास में शास्त्र द्वारा सर्जित अनेकविध चमत्कारों की बातें संग्रहित हैं, उस का अध्ययन-अध्यापन आज के युग में भला, कौन करता है ? उस के बजाय हिंसा, झुठ, चोरी, व्यभिचार, बलात्कार, परिग्रह और अशांति से छलकते इतिहास का पठन-पाठन आज के विद्यार्थियों को कराया जाता है । लेकिन अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की गंगा-जमुना बहाने वालों के इतिहास का स्पर्श तक करने में शर्म आती है ! असंख्य दुःखों को दूर कर, राग और द्वेष के औद्धत्य को नियंत्रित करनेवाले, साथ ही प्रात्मा का वास्तविक हित करनेवाले शास्त्रों के प्रति सन्मान को भावना अपनाने से ही मानव मात्र का आत्मकल्याण संभव __शास्त्र एवं शास्त्रकारों पर गालियों की बौछार कर मानव-समाजका सुधार करने की डिंगे हाँकना प्राधुनिक सुधारकों का एक-सूत्री कार्यक्रम बन गया है । ठीक वैसे ही, शास्त्र और शास्त्रप्रणेता वीतराग महापुरूषों के प्रति घणा और अपमान की भावना पैदा कर क्या नेता-अभिनेताओं के प्रति सन्मान की दृष्टि प्रस्थापित कर, मानवसमाज को सुधार रहे हो ? यह तुम्हारी कैसी अज्ञानदशा है ? वास्तव में वीतराग भगवंत के वचन/वाणी रुपी शास्त्रों को स्वदृष्टि बनानेवाला मानव ही आत्महित और परहित साधने में समर्थ है। शास्त्रे पुरस्कृते तस्माद वीतरागः पुरस्कृतः । पुरस्कृते नस्तस्मिन् नियमात् सर्वसिद्धयः ॥४॥१८॥ अर्थ :- शास्त्र का पुरस्कार करना मतलब वीतराग का पुरस्कार करना । और बीताग का पुरस्कार यानी निश्चित ही सर्व सिद्धि प्राप्त करना । विवेचन : शास्त्र वीतराग । जिसने शास्त्र माना उसने वीतराग का स्वीकार किया ! जिसने वीतराग को हृदय-मंदिर में प्रतिष्ठा की उसके साथ सर्व कार्य सिद्ध हो गये ! यह कैसी विडम्बना है कि शास्र का स्मरण हो और उस के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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