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शास्त्र
वाणी है ।
सर्वज्ञ वीतराग की वारणी में उपरोक्त दोनों तथ्यों का समावेश है । उन की मंगलवाणी आत्म-हित का उपदेश प्रदान करती है और निर्दोष जीवों की निरंतर रक्षा करती है ।
राग-द्व ेष से उद्दंड चित्तवाले जीवों का सम्यग् अनुशासन करने वाले शास्त्र को नहीं माननेवाले मनुष्य को जरा पूछिए :
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@ "आत्मा को चर्मचक्षु से देखने का प्राग्रही प्रदेशी राजा जीवित जीवों को चीर कर आत्मा की खोज कर रहा था, सजीव जीवों को लोहे की पेटी (बक्से) में बंद कर.... मौत के घाट उतारता था । ऐसे क्रूर और पैशाचिक प्रयोग करनेवाले प्रदेशी राजा को भला किसने दयालु बनाया ? केशी गरणधर ने ! जिन वचनों / शास्त्रों का आधार लेकर प्रदेशी का हृदयपरिवर्तन कर जीवरक्षक बनाया ।
@ श्रभिमान के मदोन्मत्त गजराज पर सवार इन्द्रभूति को किस ने परमविनयी, द्वादशांगी के प्रणेता एवं अनंत लब्धियुक्त बनाया ?
@ भोगोपभोग एवं दुनिया के राग-रंग में खोये... परम वैभवशाली शालिभद्र को पत्थर की गर्म शिला पर सोकर अनशन करने का सामर्थ्य किसने प्रदान किया ?
4 दृष्टि में से विष का लावारस छिड़कते चंडकौशिक को किस ने शांत, प्रशांत और महात्मा बनाया ?
@ अनेक हत्याओं को करनेवाले अर्जुनमाली को किस ने परम सहिष्णु और महात्मा बनने की प्रेरणा दी ?
जिनशासन के इन ऐतिहासिक चमत्कारों को क्या तुम अकस्मात कहोगे ? श्रात्मा को महात्मा और परमात्मा बनानेवाली जिनवारणी के शास्त्रों की तुम अवहेलना कर सकोगे ? और अवज्ञा कर तुम क्या अपने दु:ख दूर कर सकोगे ?
यस्माद् राग-द्वेषोद्धतचित्तान् समनुशास्ति स्द्धर्मे । सन्त्रायते च दुखाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सदिः ||
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- प्रशमरति
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