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________________ भवोद्वेग ३१६ में रोष की भावना क्या पैदा नहीं होती ?ऐसे समय तुम्हारे मन में कैसा तूफान पैदा होता है ? जो इस तूफान में फंस गया....उसकी गुण-संपदा नष्ट होते देर नहीं लगती । वह गुण-संपदा से दूर. सुदूर निकल जाता गर्जन-तर्जन : द्रोह-विद्रोह का गर्जन-तर्जन संसार-समुद्र में निरन्तर सुनायी देता है । पिता पुत्र का द्रोह करता है, तो पुत्र पिता का द्रोह करता है। प्रजा राजा का द्रोह करती है, तो राजा प्रजा का द्रोह करता है। पत्नी पति का द्रोह करती नजर आती है, तो पति पत्नी का द्रोह करता दृष्टिगोचर होता है। शिष्य गुरु का द्रोह करता है और गुरु शिष्य का द्रोह करता है। जहाँ देखो, वहाँ द्रोह की यह परंपरा और गर्जन-तर्जन अबाधित रूप से चल रहा है। अविश्वास और शंका-कुशंका के वातावरण में संसार-समुद्र के प्रवासी का दम घुट रहा मसाफिर :- संसार-सागर में असंख्य प्रात्मायें विद्यमान हैं । लेकिन महासागर के सीने पर लहराती-इतराती नौकाओं में प्रवास करने वाला एक मात्र प्राणी मनुष्य है। ये लोग संसार-सागर का प्रवास खेते हुए बुरी परिस्थिति के फंदे में फंस जाते हैं और परिणाम स्वरूप जानेअनजाने घोर संकट में पड़ जाते हैं । उन में से बड़ी संख्या में तो पर्वतमालाओं से टकरा कर समुद्र की अतल अनन्त गहराई में खो जाते हैं। बचे-खुचे लोग सफर जारी रखते हुए, मध्य भाग में प्रज्वलित वडवानल के कोप-भाजन बन मर जाते हैं...। कुछ तो आकाश में सतत कौंधती बिजली के गिरने से खत्म हो जाते हैं.... । कई तूफान की विभीषिका में अपना सर्वस्व खो बैठते हैं ! शेष रहे थोड़े से मुसाफिर, जिन्हें भव सागर का यथार्थ ज्ञान है और जो ज्ञान-समृद्ध घीर-गंभीर महापुरुषों का अनुसरण करते हैं, बच पाते हैं....भव-सागर को पार करने में सफल हो जाते हैं ।। ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में प्रस्तुत संसार-सागर अनन्त विषमताओं से भरा अत्यन्त दारुण है। जब तक वे यहाँ सदेह होते हैं, तब तक अधिकाधिक उद्विग्न रहते हैं। किसी भी सुख के प्रति वे आकर्षित नहीं होते, ना ही स्वयं ललचाते हैं । उनका सदा-सर्वदा सिर्फ एक ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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