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वाकई, कंदर्प का वडवानल आश्चर्यजनक है ! वडवानल में जीव निर्भय बनकर कूद पड़ते हैं ! भड़कते वडवानल के बावजूद वे उस में से निकलने का नाम नहीं लेते .... बल्कि राग का इन्धन डाल-डालकर उसे निरन्तर प्रदीप्त रखते हैं ! कंदर्प यानी काम वासना / भोग-संभोग की तीव्र लालसा । नर नारी के संभोग की वासना में धू-धू जलता है और नारी नर के संभोग में । जबकि नपुंसक, नर व नारी, दोनों के संभोग की वासना में जलता है । वास्तव में देखा जाए तो संसारसागररूपी वडवानल, भयंकर, भीषण और सर्वभक्षी है....। सामान्यत: संसार-सागर के सारे प्रवासी इस ( वडवानल) में फँसे नजर आते हैं, जब कि कुछ उसकी ओर लपकते दिखायी देते हैं ।
ज्ञानसार
मच्छ और कच्छप : संसार - समुद्र में बड़े-बडे मगरमच्छ और मछलियाँ भी हैं। छोटे-बड़ें साध्य असाध्य रोगों के मच्छ भी मुसाफिरों के लिए प्राफत बने रहते हैं....। उन्हें हैरान-परेशान करते हैं। एकाध मगरमच्छ का खाद्य बनता दिखायी देता है, तो कोई इन मछलियों की गिरफ्त में फँसा नजर आता है । इन रोग रूपी मच्छों से प्रवासी सदेव भयभीत होते हैं ।
ठीक उसी तरह शोक-कछुओं की भी इस संसार सागर में कमी नहीं है, जो प्रवासियों को कोई कम हैरान-परेशान नहीं करते ।
चंचला :- जरा आकाश की ओर दृष्टिपात करो । रह-रहकर चंचला कौंधती नजर आती है । उसकी चमक-दमक इन आँखों से देखी न जाए, ऐसी चकाचौंध करने वाली अजीबों-गरीब होती है । कभी-कभार वह हमें छूते हुए विद्युत वेग से निकल जाती है । दुर्बुद्धि ही चंचला है । हिंसामयी बुद्धि झूठ- चोरी की बुद्धि, दुराचार व्यभिचार की बुद्धि, माया मोह की बुद्धि और राग-द्वेष की बुद्धि । चंचला की चमक-दमक में जीव चकाचौंध हो जाता है ।
तफान :- मत्सर की आंधी कितने जोर-शोर से जीवों को अपनी चपेट में ले लेती है ! गुणवान व्यक्ति के प्रति रोष यानी मत्सर । संसार-सागर में ऐसी प्रांधी प्राती ही रहती है । क्या तुमने कभी नहीं देखी ? तुम्हें उसकी आदत पड़ गयी है । अतः तुम उस की भयंकरता.... भीषणता को समझ नहीं पाओगे । लेकिन गुणवान व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन
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