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१९. तत्त्व-दृष्टि
'जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !' यह कहना सहज है ! हर कोई सरलता के साथ इसका उच्चारण कर सकता है ! लेकिन स्व-दृष्टि को परिवर्तित कर सृष्टि का नव सर्जन करने कौन तैयार है ? किस दृष्टि के कारण हमें भव-भ्रमणाओं में उलझना पडता है ।
और किस दृष्टि की पतवार थाम कर हम भव-सागर की उत्ताल तरंगों को मात कर, मोक्ष की ओर निर्विघ्न प्रस्थान कर सकते हैं ? किस दृष्टि से हमें परमानन्द की प्राप्ति होती है और किस दृष्टि के कारण विषयानन्द की लोलुपता बढती है ? इसका रहस्य जानने के लिए प्रस्तुत अष्टक को खूब ध्यानपूर्वक पढो और उसका चितन-मनन करो।
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