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निर्भयता
२३६ से सांगोपांग सफल होती है | मदोन्मत्त मोह-सेना, मुनिराज के समक्ष तृणवत् प्रतीत होती है । फिर भी उसकी हलचल, प्रयत्न और आवेग कुछ कम नहीं होते । _____ महाव्रत-पालन में सांगापांग सफलता, सार्वत्रिक समता, विश्वमैत्री की भव्य भावना और इन सबकी सिरमौर-सदृश परमात्म-भक्ति ! साथ ही आज्ञा-पालन, मुनिराज की शक्ति में निरंतर विद्युत-संचार करते रहते हैं ! उनके मुखमण्डल पर एक अद्भुत खुमारी दृष्टिगोचर होती है । वह खुमारी होती है निर्भयता की, शत्रु पर विजयश्री प्राप्त करने की असीम श्रद्धा की ।
मुनिवर दो प्रकार के युद्ध में सावधान होते हैं ! 'प्रोफन्सिव' और डिफेन्सिव' [OFFENSIVE AND DIFFENSIVE] ! शत्रु पर आक्रमण कर उसे धराशायी करने के साथ-साथ वह स्व-संपत्ति का संरक्षण भी करते हैं । ठीक उसी तरह किसी अन्य मार्ग से शत्र घुसपैठ कर लूट-मार न मचा दे, इस की पूरी सावधानी भी बरतते हैं।
- मुनि उपवास, छठ्ठ अट्ठमादि उग्र तपश्चर्या करते हैं। यह भी मोहरिपु के खिलाफ एक जंग है, जो समय-समय पर खेलते रहते हैं । लेकिन फिर भी मुनिराज को अपनी जाल में फंसाने के प्रयत्नों में मोहराजा भी कोई कसर नहीं रखता ! 'आहार संज्ञा' के मोर्चे पर मुनिराज को लडता छोड दूसरी ओर से वह उनके क्षेत्र में अभिमान
और क्रोध के सुभटों को छद्मवेश में घुसा देता है ! लेकिन मुनि भी इतने सोधे सादे और भोले नहीं है ! मोहराजा सेर हैं तो मुनिवर सव्वासेर जो ठहरे ! वे 'डिफेन्सिव' जंग में भी निपुण होते हैं । अतः तपश्चर्या करते समय वो क्रोध ओर अभिमान से हमेशा दूर रहते हैं । मोहराज के इन सूभट-द्वय को वे अपने पास फरकने नहीं देते !
ब्रह्मास्त्र की सहायता से महामुनि रणक्षेत्र में रणसिंधा फुक मोहरिपु की विराट सेना को मार-काट करते हुए, लाशों को रौंदते हुए आगे बढ जाते हैं ! बेचारा मोह ! सारी दुनिया को अपनी अंगुली के इशारे पर नचाता है, लेकिन मुनिवर का वह बाल भी बांका नहीं कर सकता ! वह निस्तेज, अशक्त और निर्जीव सिद्ध होता है ! मुनि राज की निर्भयता और अजेयता के आगे उसका कुछ नहीं चलता !
हमेशा एक बात याद रखो ! शत्रु की कैसी भी घेरेबन्दी क्यों न हो ? तुम सदा निर्भय बने रहो ! ब्रह्मज्ञान का हथियार हाथ में रहने दो ! उसे अपने से अलग न करो ! उसे छिनने के लिए शत्रु
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