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ज्ञानसार
मन में सदैव भय की भावना, भयाक्रांतता बनी रहेगी और यही भावना तुम्हारी मोक्षाराधना के मार्ग में रोड़ा बनकर नानाविध मानसिक बाधाएँ । अवरोध पैदा करती हैं ! अतः इसे मिटाने के लिए ज्ञानदृष्टि का अमृत - सिंचन करना चाहिए। तभी मोक्ष- पथ की आराधना सुगम और सुन्दर बन सकती है ।
● विश्व में कुछ छिपाने जैसा नहीं है !
● विश्व में लेन-देन करने जैसा कुछ नहीं है ! ● विश्व में संग्रह करने जैसा कुछ नहीं है !
इन तीन बातों पर गहराई से चिंतन-मनन कर गले उतारना है, हृदयस्थ करना है । परिणामस्वरूप भय का कहीं नामोनिशान नहीं रहेगा । सर्वत्र अभय का मधुरनाद सुनायी देगा । मुनिमार्ग निर्भयता का राजपथ है । क्योंकि वहां छिपाने जैसा, गुप्त रखने जैसा कुछ भी नहीं है । जड़ पदार्थों का नाहीं वहां लेन देन करना है, नाही भौतिक पदार्थों का संग्रह करना है ।
हे मुनिवर ! ग्रापकी आत्मा के प्रदेश - प्रदेश पर निर्भयता की मस्ती उल्लसित है ! उसकी तुलना में स्वर्गीय मस्ती भी तुच्छ है । एक ब्रह्मास्त्रमादाय निघ्नन् मोहचमूं मुनिः ! बिभेति नैव संग्रामशीर्षस्थ इव नागराट् ||४|| १३२ ॥
अर्थ :
ब्रह्मज्ञान रूपी एक शस्त्र धारण कर, मोहरुपी सेना का संहार करता मुनि, संग्राम के अग्रभाग में ऐरावत हाथी की भांति भयभीत नहीं होता है !
विवेचन : भय कैसा और किस बात का ? मुनि और भय ? ग्रनहोनी बात है ! मुनि के पास तो 'ब्रह्मज्ञान' का शस्त्र है ! इसमे वह सदासर्वदा निर्भय होता है ।
मुनि यानी घनघोर युद्ध में अजेय शक्तिशाली मदोन्मत्त हाथी ! उसे भला पराजय का भय कैसा ? उसे शत्रु का कोइ हुंकार या ललकार भयाक्रान्त नहीं कर सकता ।
मोह - रिपु से सतत संघर्षरत रहते हुए भी मुनि निर्भय और निश्चल होता है । ब्रह्मास्त्र के कारण वह नित्यप्रति आश्वस्त और निश्चित है ! मोह – सेना की ललकार और उत्साह को क्षणार्ध में ही मटियामेट करने की मुनिराज की योजना 'ब्रह्मास्त्र' को सहायता
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