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________________ २४० लाख प्रयत्न करेगा, शाम, दाम, दंड और भेद का आधार लेगा, तुम्हें प्रलोभन दिखा कर बहकाने का प्रयत्न करेगा । लेकिन सावधान ! हथियार हाथ से चला न जाए ! मुनि को इसकी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए । फिर भय का प्रश्न ही नहीं उठेगा ! अर्थ मयूरी ज्ञानदृष्टिश्वेत् प्रसर्पति मनोवने । वेष्टनं भयसर्पाणां न तदानन्दचन्दने ||५|| ||१३३॥ : यदि ज्ञान दृष्टि रूपी मयूरी मनरुपी उपवन में स्वच्छद रूप से के लि क्रीडा करती है तो आनन्द रुपी बावनाचंदन के वृक्ष पर भयरूपी साँप लिपटे नहीं रहते । विवेचन : 'मन' बावना चंदन का उपवन है । 'ग्रानन्द' बावनाचंदन का वृक्ष है । 'भय' भयंकर सर्प है। ज्ञानसार 'ज्ञान दृष्टि' उपवन में किल्लाल करती, मीठी कूक से सब के चित्त- प्रदेश को हर्षोत्फुल्ल करती मयूरी है ! मुनिवर का मन यानी वावना चंदन का अलबेला उपवन ! वहाँ सर्वत्र सौरभ ही सौरभ ! जहाँ दृष्टि पडे वहाँ सर्वत्र चंदन के वृक्ष ! एक नहीं अनेक ! और वह भी सामान्य चंदन के नही, बल्कि बावना चंदन के वृक्ष ! जहाँ नजर पडे वहाँ आनन्द ही आनन्द ! मुनिवर का मन यानी आनन्द-वन ! उस ग्रानंद वन में मयूरी की मीठी कूक होती है । उस मयूरी का नाम है ज्ञानदृष्टि ! फिर भला, वे भय - सर्प चंदनवृक्ष से कैसे लिपट सकते हैं ? मुनि - जीवन के लिए ज्ञान- दृष्टि महत्त्वपूर्ण है ! ज्ञानदृष्टि के बल पर ही मुनि निर्भय रह सकता है । साथ ही उसके सान्निध्य में आत्मानंद की अनुभूति हो सकती है । ज्ञानदृष्टि का मतलब है ज्ञान की दृष्टि.... सम्यग् ज्ञान की दृष्टि । जगत् के पदार्थ और उसके प्रसंगों को ज्ञान-परिपूर्ण दृष्टि से देखना है, परखना है और अवलोकन करना है । इस तरह जीव को अनादि काल से आज तक नहीं मिली है ! अत; वह जो कुछ देखता है, परखता है, समझता है और जिसके सम्बंध में चिंतन की दिव्य-दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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