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________________ निमंयता विवेचन : सांसारिक सुख ? भस्म से अधिक कुछ नहीं, राख है राख ! भय को प्रचंड अग्नि-ज्वालाओं से प्रगटी राख है ! ऐसे तुच्छ और हीन सांसारिक सुख से, राख जैसे संसार-सुख से भला, तुम्हें क्या लेना-देना ? संसार का सुख यानी शब्द, रूप, रस, गंध, और स्पर्श का सूख ! ये सब संसार-सुख के अनेकविध रुप हैं। इसके असंख्य प्रकार के रुपों को तुम्हारी अपनी चर्म-चक्षुओं से निहारते हुए राख कहीं नजर नहीं • पाएगी ! बल्कि राख को राख समझने-देखने के लिए सुखों का पृथक्करण करना होगा । तभी तुम उसे वास्तविक स्वरुप में देख पायोगे, समझ पाओगे। भय, सचमुच क्या आग लगती है ? यदि तुम भय को ज्वालामुखी समझोगे तभी 'संसार-सुख राख है, यह बात समझ पाओगे। अतः सर्वप्रथम भय को अग्नि समझना, मानना, और अनुभव करना होगा। भय का क्षणिक स्पर्श भी हृदय को झलसा देता है । जानते हो न, अलसने से जो असह्य वेदना होती है, उसको सहना अति कठिन होता है। भय का स्पर्श कब होता है, भयाग्नि कब धधक उठती है, इस से क्या तुम भलि-भांति परिचित हो ? जहाँ संसार-सुख की अभिलाषा का उदय हुआ, उसका उपभोग करने की अधीरता पैदा हुई कि भयाग्नि सहसा धधक उठती है । परिणामतः उपभोग के पूर्व ही संसार-सुख जल कर राख हो जाता है । और तब, जिस तरह छोटे बच्चे शरीर पर राख मलकर मगन हो नाचते हैं किल्लोल करते हैं, उसी तरह तुम भले ही संसार-सुख की भस्म बदन पर मलकर खुश हो जाओ ! लेकिन मिलनेवाला कुछ भी नहीं ! मिलेगी तो सिर्फ राख ही मिलेगी ! संसार के हर सुख के उपर असंख्य भयों के भूत मंडरा रहे हैं ! रोग का भय, लुटे जाने का भय, विनाश और विनिपात का भय, चोर का भय, मान-अपमान का भय, समाज का भय, सरकार का भय ! यहां तक की भव-भ्रमरण का भी भय । भय के सिवाय इस दुनिया में है ही क्या ? अतः सुज्ञ व्यक्ति को भूलकर भी कभी ऐसे सुख की अपेक्षा, कामना नहीं करनी चाहिए, कि जहां भयाग्नि का भाजन बनने की संभावना है । Jain Education International: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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