________________
१४. विद्या
अविद्या के प्रभाव से प्रभावित जीव "विद्या" के परम तत्त्व को समझ भी पाएंगे ?
भवभवान्तर से अविद्या की वासना से युक्त जीवात्मा न जाने कैसे दारूण दुःखों का अनुभव लेती है !
--
ऐसी स्थिति में करुणासागर परम दयालु ग्रंथकार, पौद्गलिक सुख के साधनों के प्रति अभिनव दृष्टि से देखने की, अवलोकन करने की प्रेरणा उन्हें प्रदान करते हैं । साथ ही आत्मा का यथार्थ दर्शन करने की अनोखी सूझ देते हैं !
'विद्या' प्राप्त करो और विद्या से दूर रहो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org