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१३. मौन
मौन धारण कर ! निःस्पृह बनते ही अपने आप मौन का आगमन हो जाएगा! मौन धारण करने से अनेकविध स्पृहाए शान्त हो जाएंगी ! ___मौन की वास्तविक परिभाषा यहाँ ग्रंथकार ने पालेखित की है ! व्यक्ति को ऐसा ही मौन धारण करना चाहिए !
हे श्रमणश्रेष्ठ ! तुम्हारा चारित्र ही एक तरह से मौन है ! मौन-रहित भला चारित्र कैसा ? पुद्गलभाव में मन का मौन धारण कर ! यहां तक कि पौद्गलिक विचारों को भी तिलांजलि दे देनी चाहिए ! उत्तमोत्तम मानसिक स्थिति का सृजन करने में प्रस्तुत अष्टक स्पष्ट रुप से हमारा मार्गदर्शन करेगा ।
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