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________________ १२३ रही है। अपार दु:ख, तारकीय यातना और भीषण दद का यही तो मू भूत कारण है। जीव की इस भूल का उन्मूलन करने हेतु पूज्य उपाध्यायजी महाराज 'निश्चय नय' की दृष्टि का अंजन लगाकर उसके माध्यम से पुदगल एवं प्रात्मा का मूल्यांकन करने का विधान करते हैं। "मधुर शब्द-रूप-रंग-रस-गंध और स्पर्श कितने ही सुखद, मादक, मोहक, मधुर क्यों न हो, लेकिन हैं तो जड़ हो । इनके उपभोग से मेरो ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय प्रात्मा की परमतृप्ति होना असंभव है । तो फिर उन शब्दादि परिभोग का प्रयोजन ही क्या है ? ऐसी काल्पनिक मिथ्या तृप्ति के पीछे पागल बन, पुदगल-प्रेम के प्रति प्रोत्साहित हो, मैं अपनी आत्मा की कदर्थना (दुर्दशा) क्यों करु ? इसके बजाय मैं अपनी आत्मतृप्ति हेतु श्रेष्ठ पुरुषार्थ करुंगा ।" यह है ज्ञानी पुरुष की ज्ञान-दृष्टि और ज्ञान-वाणी । इसी दृष्टि को जीवन में अपनाकर जड़ पदार्थो के प्रति रही प्रासक्ति का मुलोच्छेदन करने का उद्यम करना चाहिये। लेकिन सावधान ! कहीं तुमसे भूल न हो जाए.... और अर्थ का अनर्थ न हो जाय ! तुम असली मार्ग से भटक न जाओ । “जड़ जड़ का उपभोग करता है, इससे भला आत्मा का क्या सम्बन्ध ? उससे आत्मा को क्या लेना-देना ?" इस तरह का विचार कर यदि मतिभ्रम हो गया और जड़ पदार्थो के उपभोग में खो गये तो यह तुम्हारी सबसे बड़ी भूल होगी, भयंकर भूल-निरी आत्मवंचना । फलतः पुनः एक बार तुम उसी चक्र में फस जाओगे । क्योंकि इससे जड़ पद्गलों की तृप्ति में आत्म-तृप्ति मानने की अनादिकाल से चली आ रही मिथ्या मान्यता दुबारा दृढ़ बन जायेगी । भोगासक्ति का भाव गाढ़ बन जाएगा । "जड़ जड़ का उपभोग करता है, मेरी आत्मा भला कहाँ उपभोग करती है ?" आदि विचार यदि तुम्हें जड़-पदार्थो के उपभोग के लिये उकसाये, पुद्गल की सगति करने के लिये प्रेरित करे, तो समझ लो कि तुम अभी जिनेश्वर भगवंत के वचनों से कोसों दूर हो, बल्कि जिनवचनों को कतई समझ नहीं पाये हो । तुम्हारे लिये सम्यग़ज्ञान की मंजिल अभी काफी दूर है, तुम सम्यग्दर्शन पाने में सर्वथा असमर्थ सिद्ध हुए हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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