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________________ ज्ञानसार भिमानी/घमंडी बन जाता है, संसारवर्धक क्रिया-कलापों में निरन्तर ओतप्रोत रहता है और स्व प्रात्मा को मलिन/कलंकित बनाता भवसागर की अनन्त गहराईयों में असमय ही खो जाता है । फलतः मौत की गोद में सदा के लिये सो जाता है । महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि जीवात्मा के रोम-रोम में प्रात्मा की सत्-चित्-प्रानन्दमय अवस्था प्राप्त करने की भावना जाग्रत होनी चाहिये । यदि हो गयी है, तो उसके जीवन में ज्ञान और क्रिया का आगमन होते विलंब नहीं लगेगा । अनादि काल से प्रकृति का यह सनातन नियम है कि जो वस्तु पाने की तमन्ना मन में पैदा होती है, उसकी सही पहचान, पाने के उपाय और उसके लिये किया जानेवाला श्रावश्यक पुरुषार्थ होता ही है । जिसके मन में अतुल संपदा पाने की आकांक्षा जगी हो, वह उसे प्राप्त करने के लिये आवश्यक ज्ञान-प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ क्या नहीं करता ? अवश्य करता है । किसी वैज्ञानिक के मन में अद्भुत आविष्कार की महत्त्वाकांक्षा उदित हो जाए, तो वह उसके लिये क्या अथक परिश्रम नहीं करेगा ? करेगा ही। ठीक उसी तरह अपनी आत्मा को परम विशुद्ध बनाने की तीव्र भावना जिन में उत्पन्न हो गयी थी उनकी, तप्त शिलानों पर आसनस्थ होकर, घोर तपस्या करने की आख्यायिकायें क्या नहीं सुनी हैं ? मोक्षमार्ग का ज्ञान हो जाने के उपरान्त भी अगर अनुकूल पुरूषार्थ करने में कोई जीव उदासीन रहता हो तो उसका मूल कारण प्राप्त सुखसमृद्धि में खोये रहने की कुप्रवृत्ति है, साथ ही नानाविध पापक्रियाओं का सहवास । जिन्हें वह छोड़ता नहीं है, उनसे अपना छुटकार पाता नहीं है। परमात्माभक्ति, प्रतिक्रमण, सामायिक, सूत्र-स्वाध्याय, ध्यान, गुरुभक्ति, ग्लान वैयावत्य, प्रतिलेखन, तप-त्यागादि विमल क्रियाओं को सदासर्वदा विनीत माव से अपने जीवन में कार्यान्वित करने वाली आत्मा, नि:सन्देह आत्मविशुद्धि के प्रशस्त राजमार्ग पर चल कर उसे सिद्ध करके ही रहती है। जो यह कहता है कि, "क्रियाओं का रहस्य....परमार्थ समझे बिना उन्हें करना अर्थहीन है, व्यर्थ है ।' यदि वह स्वयं उन का रहस्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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