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६. क्रिया
"यदि धार्मिक क्रियायें संपन्न न की जायें तो क्या नुकसान है ?" यह प्रश्न वर्षों से किया जा रहा है । लेकिन कोई भूलकर भी यह प्रश्न नहीं करता कि 'यदि पाप-क्रियायें न करें, तो क्या हर्ज है ?' सचमुच ऐसा प्रश्न कोई नहीं उठाता और उसका भी कारण है ! क्योंकि पाप-क्रियायें सब को पसन्द हैं । यदि धर्म पसन्द है, तो धार्मिक क्रियायें भी पसन्द होनी ही चाहिये। मोक्ष इष्ट है, तो मोक्ष-प्राप्ति के लिये आवश्यक क्रियायें इष्ट होनी ही चाहिये।
ग्रंथकार ने यहाँ जीवन में धार्मिकक्रियाओं की आवश्यकता और अनिवार्यता को समझाने का सफल प्रयत्न किया है । उन की बातें कितनी सार्थक और अकाटय हैं, यह समझने के लिये प्रस्तुत अष्टक का अभ्यास अवश्य करें।
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