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________________ विषय प्रवेश अर्थात् द्रव्य के पर्याय से सम्बन्ध रखनेवाली जो समय घटिका आदि रूप स्थिति है, वह स्थिति ही 'व्यावहारकाल' है; किन्तु जो द्रव्य की पर्याय है, वह काल नहीं है । अपितु उसके परिणमन क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि लक्षणों से जिसे जाना जाता है वह व्यावहारिककाल आदि और अन्त सहित होता है । किन्तु निश्चयकाल शाश्वत है और आदि अनन्त रहित है । व्यावहारिककाल स्वयं द्रव्य नहीं है । श्वेताम्बर परम्परा में नैश्चयिककाल को मात्र जीव और अजीव का पर्याय रूप माना गया है । दिगम्बर परम्परा में नैश्चयिक दृष्टि से काल को वस्तु सापेक्ष स्वतन्त्र वास्तविकता के रूप में स्वीकृत किया गया है । कर्मानव और विशेषावश्यकभाष्य में काल स्वतन्त्र द्रव्य है या नहीं इन दोनों मतों का उल्लेख प्राप्त है। जैनदर्शन में काल स्वतन्त्र द्रव्य है या नहीं ये दोनों विचारधाराएँ विशेषावश्यकभाष्य अर्थात् विक्रम की सातवीं शती तक चलती रही हैं। इस प्रकार जैनदर्शन में पंचास्तिकाय की अवधारणा से ही षड्द्रव्य की अवधारणा का विकास हुआ है और कालद्रव्य की स्वतन्त्र सत्ता को कालान्तर में ही स्वीकार किया गया है I - १.३.१ आत्मा का स्वरूप एवं लक्षण ४१ आचारांगसूत्र में आत्मा के स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा गया है कि “जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया” अर्थात् जो विज्ञाता है वही आत्मा है, जो आत्मा है वही विज्ञाता है । आत्मा को परिभाषित करते हुए अभिधानराजेन्द्रकोश में कहा गया है कि “अतति इति आत्मा” जो गमन करती है, वही आत्मा है अर्थात् जो विभिन्न गतियों या योनियों में जन्म ग्रहण करती है वही .४२ आत्मा है आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार जो सर्वनयों ४१ (विचार - विकल्पों) से शून्य है, वही शुद्ध आत्मतत्त्व या समयसार है । वह केवलज्ञान और केवलदर्शन से युक्त अर्थात् विशुद्ध ४२ आचारांगसूत्र १/५/५/१०४ । 'अभिधानराजेन्द्रकोश', भाग २ पृ. १८८ | १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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