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आधुनिक मनोविज्ञान और त्रिविध आत्मा की अवधारणा
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अबोधात्मा कहेगी कि चोरी कर लो। उस समय बोधात्मा कहेगी कि यहाँ चोरी करोगे तो पकड़े जाओगे। अतः वह सलाह देगी कि एकान्त में रात्रि के समय सावधानी से चोरी करना। इसके विपरीत जैनदर्शन की अन्तरात्मा कहेगी कि चोरी करना अनैतिक है, पाप है अतः चोरी मत करो, अपनी इच्छा को संयमित करो। __यहाँ दोनों में यह अन्तर है कि जहाँ फ्रायड की विवेचना का आधार मनोवैज्ञानिक व्यवहार का पक्ष है वहीं जैनदर्शन का आधार आध्यात्मिक है।
आदर्शात्मा (SUPER EGO)
फ्रायड ने आदर्शात्मा को बोधात्मा के आदर्श (SUPER EGO) के रूप में स्थापित किया है। फ्रायड के अनुसार आदर्शात्मा का गहरा सम्बन्ध सभ्यता, संस्कृति, धर्म और नैतिकता से है। उसके अनुसार आदर्शात्मा का निर्माण एवं विकास मानवीय गुणों और उसके उच्च आदर्शों के आधार पर होता है। जो व्यक्ति जिस प्रकार की सभ्यता और संस्कृति में रहता है उसकी आदर्शात्मा उतनी ही विकसित होगी। आदर्शात्मा का विकास समाज, धर्म और संस्कृति की कार्यशाला में ही होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आदर्शात्मा अबोधात्मा के ठीक विपरीत है। अबोधात्मा की संरचना जैविक वासनाओं के आधार पर ही होती है, तो आदर्शात्मा की संरचना आध्यात्मिक आदर्शों के आधार पर होती है।
तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम यह पाते हैं कि जैनदर्शन की परमात्मा और आदर्शात्मा में कुछ समानताएँ हैं, तो कुछ विषमताएँ हैं। आधुनिक मनोविज्ञान जहाँ आदर्शात्मा को सभ्यता, संस्कृति, धर्म और नैतिकता के आधार पर निर्मित मानता है, वहाँ जैनदर्शन आदर्शों को आत्मा में अनुस्यूत मानता है। वह यह कहता है कि आदर्श निर्मित नहीं होते - वे आत्मा में स्वतः ही अपना अस्तित्व रखते हैं। जैनदर्शन की मान्यता है कि आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में आदर्श रूप ही है, विकृतियाँ तो आती हैं और वे समाप्त भी की जा सकती हैं। इस प्रकार जैनदर्शन में
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