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________________ आधुनिक मनोविज्ञान और त्रिविध आत्मा की अवधारणा ४०१ का आधार व्यक्ति की आध्यात्मिक विशुद्धि होता है। फिर भी दोनों में जो कुछ व्यवहारगत समरूपताएँ हैं, उससे हम इन्कार भी नहीं कर सकते। आधुनिक मनोवैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि बर्हिमुखी व्यक्ति यथार्थवादी और भोगप्रिय होता है। उसकी रुचि पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने में होती है। इसके विपरीत अन्तर्मुखी व्यक्ति आदर्शवादी और आत्मकेन्द्रित होता है। वह सामाजिक जीवन में रस न लेकर एकान्तप्रिय होता है। अतः किसी सीमा तक आधुनिक मनोविज्ञान के बहिर्मुखी और अन्तर्मुखी व्यक्तित्व की समरूपता क्रमशः बहिरात्मा और अन्तरात्मा से मानी जा सकती है। ७.२ फ्रायड की त्रिविध अहम् की अवधारणा और त्रिविध आत्मा की अवधारणा आधुनिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड का महत्वपूर्ण स्थान है। फ्रायड पहले मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने मन के अहम् के गत्यात्मक स्वरूप को समझकर उसे तीन विभागों में बाँटा था। उनके अनुसार हमारा अहम् तीन प्रकार का होता है : १. वासनात्मक अहम् (अबोधात्मा); कान्शस माइंड (चेतन मन) २. चेतनात्मक अहम् (बोधात्मा); अनकान्शस माइंड (अचेतन मन) ३. आदर्शात्मक अहम् (आदर्शात्मा); सुपरकान्शस माइंड (अतिचेतन मन) फ्रायड ने इन्हें क्रमशः इड (ID) इगो (EGO) और सुपर इगो (SUPEREGO) के नाम से अभिहित किया है। भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने इन तीनों को क्रमशः १. अबोधात्मा; २. बोधात्मा और ३. आदर्शात्मा के रूप में चित्रित किया है। मनुष्य के अन्दर वासनाओं और आदर्शों का जो संघर्ष चलता है, उसके मूल में हमारे अहम् के ये तीनों स्तर ही काम करते हैं। फ्रायड के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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