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________________ ४०० जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा राजनैतिक क्षेत्र में नेतृत्व करने में अधिक रुचि रखता है। यदि इन तथ्यों पर जैनदर्शन के बहिरात्मा की दृष्टि से विचार करें तो हमें ऐसा लगता है कि बहिरात्मा के भी वही लक्षण हैं, जो बहिर्मुखी व्यक्तित्व के हैं। बहिरात्मा भी सांसारिक, पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों में अधिक रुचि रखता है। उसकी जीवनदृष्टि भोगवादी होती है। बहिरात्मा भी बहिर्मुखी व्यक्ति की तरह ही मनोभावनाओं से प्रभावित होती है। वह ऐन्द्रिक और जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति को ही अपने जीवन का चरम लक्ष्य मानती है। __अन्तर्मुखी व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए आधुनिक मनोवैज्ञानिक यह बताते हैं कि अन्तर्मुखी व्यक्ति की रुचि सामाजिक और बाह्य जगत् में नहीं होती है। वह आत्म केन्द्रित एवं एकान्तप्रिय होता है। उसकी रुचि चिन्तन और मनन में होती है। वह अपने विचारों में खोया रहता है और आदर्शवादी होता है। सामाजिक परिवेश की अपेक्षा उसे प्राकृतिक परिवेश अर्थात् एकान्त अधिक अच्छा लगता है। वह कोई भी निर्णय जल्दी में नहीं लेता है। सामान्यतः दार्शनिक, कवि, वैज्ञानिक इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें, तो हम यह पाते हैं कि जैनदर्शन में अन्तरात्मा के जो लक्षण बताए गये हैं, उनमें से कुछ लक्षण अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के भी होते हैं। अन्तरात्मा सांसारिक भोगों से विरक्त रहती है। उसकी रुचि आत्म-चिन्तन में होती है। एकान्त में ध्यानादि करना उसे अधिक प्रिय लगता है। वह विचार-प्रधान और आदर्शवादी होती है। उसकी जीवनदृष्टि आत्मनिष्ठ होती है। इस प्रकार आधुनिक मनोविज्ञान जिसे अन्तर्मुखी व्यक्ति कहता है उसे ही जैनदर्शन सामान्यतः अन्तरात्मा कहता है। यद्यपि यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आधुनिक मनोविज्ञान व्यक्तित्व के इन दोनों प्रकारों की चर्चा मुख्य रूप से उनकी मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के आधार पर करता है, जबकि जैन दर्शन बहिरात्मा और अन्तरात्मा की यह चर्चा उनके आध्यात्मिक गुणों के अविकास या विकास के आधार पर करता है। मनोविज्ञान का आधार मुख्य रूप से व्यक्ति का व्यवहार ही है, जबकि जैनदर्शन में इस विभाजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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