________________
३६०
जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा
सिद्धों के भेद को लेकर दूसरा मतभेद गृहस्थलिंग और अन्यलिंग सिद्ध को लेकर है। श्वेताम्बर परम्परा यह मानती है कि कोई व्यक्ति गृहस्थ जीवन अथवा अन्य परम्पराओं में गृहीत संन्यस्त जीवन से भी तदभव में मुक्त हो सकता है। इसके लिये उन्होंने स्वलिंग और गृहस्थलिंग सिद्ध ऐसे सिद्धों के दो भेद स्वीकार किये हैं, किन्तु दिगम्बर परम्परा की यह मान्यता है कि सिद्धि केवल निर्ग्रन्थ लिंग से ही सम्भव है। इस प्रकार सिद्धों के भेद को लेकर दिगम्बर परम्परा स्त्रीलिंगसिद्ध, नपुंसकलिंगसिद्ध, गृहस्थलिंगसिद्ध
और अन्यलिंग सिद्ध इन चार भेदों को स्वीकार नहीं करती है। उनके अनुसार पुरुष पर्याय में केवल निर्ग्रन्थ से ही मुक्ति है - स्त्री पर्याय, नपुंसक पर्याय, गृहस्थ लिंग और अन्य लिंग से मुक्ति सम्भव नहीं है। अतः सिद्धों के उक्त चारों भेद दिगम्बर परम्परा को मान्य नहीं हैं।
।। पंचम अध्याय समाप्त ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org