SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार ३२५ की अमृतधारा बरसाती है।३० बनारसीदासजी आगे लिखते हैं कि उन परमात्मा के आत्मदर्पण या ज्ञान में जगत् के वे समस्त पदार्थ झलकते है,३१ जो आनन्दमय ज्ञानचेतना से प्रकाशित हैं और संकल्प-विकल्प से रहित हैं; स्वयंबुद्ध हैं; अचल हैं और अखण्डित हैं; अव्याबाध सुखादि अनन्त गुणों से परिपूर्ण हैं; परम वीतराग हैं; इन्द्रियों से अगोचर किन्तु ज्ञानगोचर हैं; जन्म-मृत्यु, क्षुधा-तृषा आदि से रहित निराबाध हैं और सुख के धारक हैं। वही परमात्मा ध्यान करने योग्य हैं।३२ ५.२.११ आनन्दघनजी के अनुसार परमात्मा का स्वरूप जैन साहित्यकारों में आनन्दघनजी का मूर्धन्य स्थान है। परमात्मा किसे कहते हैं? परमात्मा का स्वरूप क्या है? इसे १३० 'जोइ द्रिग ग्यान चरनातममैं बैठि ठौर, भयौ निरदौर पर वस्तुकौं न परसै । सुद्धता विचारै ध्यावै, सुद्धता में केलि करै, सुद्धता मैं थिर है अमृत-धारा बरसै ।। त्यागि तन कष्ट वै सपष्ट अष्ट करम को, करि थान भ्रष्ट नष्ट करै और करसै । सो तौ विकलप विजई अलप काल मांहि, त्यागि भौ विथान निरवान पद परसै ।। ११६ ।।' -समयसार नाटक (सर्वविशुद्धिद्वार) । १३१ 'कोऊ कुधी कहै ग्यान मांहि ज्ञेयकौ अकार, प्रतिभासि रहयौ है कलंक ताहि थोइयै । जब ध्यान जलसौ परवारिकै धवल कीजै, तब निराकार सुद्ध ज्ञानमय होइयै ।। तासौं स्यादवादी कहै ग्यानको सुभाव यहै, ज्ञेयको अकार वस्तु मांहि कहां खोइयै । जैसे नानारूप प्रतिबिम्ब की झलक दीखे, जद्यपि तथापि आरसी विमल जोइयै ।।१६।। -वही। २ (क) 'जगत चक्षु आनंदमय, ग्यान चेतनाभास, निरविकल्प सासुत सुधिर, कीजै अनुभौ तास ।। १२७ ।।' -वही। (ख) 'अचल अखंडित ग्यानमय, पूरन वीत ममत्व। ग्यान गम्य बाधा रहित, सो है आतम तत्व ।। १२८ ।।' -वहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy