SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार ३२३ नहीं हैं।२४ वे परमात्मा झूठे विकल्पों से रहित हैं। वे निर्विकल्प अवस्था में अवस्थित रहते हैं। वे परमात्मा शुद्ध आत्मा के अनुभव का अभ्यास करके२६ मुक्ति का नाटक खेलते हैं और मुक्तिमार्ग पर आरूढ़ होकर पूर्णस्वभाव की प्राप्ति कर केवलज्ञान को उपलब्ध करते हैं। वे सदैव उत्कृष्ट अतीन्द्रिय सुखानुभूति में १२४ (क) 'चिनमुद्राधारी ध्रुव धर्मअधिकारी गुन, रतन भंडारी अपहारी कर्म रोग की । प्यारौ पंडितन को हुस्यारौ मोक्ष-मारग मैं, न्यारो पुद्गल सौं उज्यारौ उपयोगकौ ।। जानै निज पर तत्त रहै जग में विरत्त, गहै न ममत्त मन वच काय जगको । ता कारन ग्यानी ग्यानावरनादि करम को, करता न होइ भोगता न होइ भोगको ।।चा' -वही । (ख) 'निरभिलाष करनी करै, भोग अरूचि घट मांहि । ताते साधक सिद्धसम, करता भुगता नांहि ।। ६ ।। -वही । १२५ 'ज्यौं हिय अंध विकल मिथ्यात घर, मषा सकल विकल्प उपजावत । गहि एकंत पक्ष आतम कौ, करता मानि अधोमुख धावत ।। त्यौं जिनमती दरबचारित्री कर, कर करनी करतार कहावत । वंछित मुकति तथापि मूढमति, विन समकित भव पार न पावत ।। १० ।।' -वही । २६ (क) 'राग विरोध उदै जबलौं तबलौं यह जीव मृषा मग धावै । ग्यान जग्यौ जब चेतन को तब, कर्म दसा पर रूप कहावै ।। कर्म विलेछि करै अनुभौ तहां, मोह मिथ्यात प्रवेस न पावै । मोह गये उपजै सुख केवल, सिद्ध भयौ जगमांहि न आवै ।। ५६ ।।' -समयसार नाटक (सर्वविशुद्धिद्वार) । (ख) 'जीव करम संजोग सहज मिथ्यातरूप धर, राग दोष परनति, जानै न आप पर । तम मिथ्यात मिटि गयौ, हुवो समकित उतत ससि । राग दोष कछु वस्तु नांहि छिन मांहि गये नसि ।। अनुभौ अभ्यास सुख रासि रमि, भयौ निपुन तारन तरन । पूरन प्रकाश निहचल निरखि, बनारसि वंदन चरन ।। ६० ।।' -वही । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १२६ Jain Education International
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy