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________________ परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार ३०६ है। ऐसे ही शुद्ध आत्मतत्व को योगीन्दुदेव ने अनेक नामों से स्पष्ट किया है। वे लिखते हैं कि वही शिव है, वही शंकर है, वही विष्णु है, वही रूद्र है, वही बुद्ध है, वही जिन है, वही ईश्वर है, वही ब्रह्मा है, वही अनन्त है और उसे ही सिद्ध भी कहा गया है। इस प्रकार योगीन्दुदेव ने न केवल विभिन्न धर्मों के आराध्यों को ही परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित किया अपितु जैन धर्म में आराध्यरूप में पंचपरमेष्टि को स्वीकार किया हैं। उन्हें भी तत्वतः परमात्मा कहा है। वे लिखते हैं कि निश्चयनय से तो आत्मा ही अर्हत् है, वही सिद्ध है और वही आचार्य है और उसे ही उपाध्याय तथा मुनि भी कहा जाता है। जैनदर्शन में अरिहन्त (अर्हत्) और सिद्ध को तो परमात्मा माना ही गया है, किन्तु योगीन्दुदेव ने आचार्य, उपाध्याय और मुनि को भी उनकी आत्मा के शुद्ध स्वरूप की अपेक्षा से परमात्मा की संज्ञा दी है। क्योंकि उनकी दृष्टि में आत्मा ही परमात्मा है।७३ ५.२.५ मुनि रामसिंह के पाहुडदोहा में परमात्मा का स्वरूप परमात्मा के लक्षण को स्पष्ट करते हुए मुनि रामसिंह का कहना है कि ज्ञानादि शक्तियों सहित जो देव देह-रूपी देवालय में निवास करता है, वही परमात्मा (शिव) है। यहाँ मुनि रामसिंह का संकेत इस तथ्य की ओर है कि ज्ञानादि शक्तियों से युक्त देह में -योगसार । -वही । ७१ 'वज्जिय सयल वियप्पइँ परम समाहि लहंति । ___ जं विंदहिँ साणंदु क वि सो सिव-सुक्ख भणंति ।। ६७ ।।' ७२ 'सो सिउ संकरू विण्हु सो सो रुद्द वि सो बुद्ध ।। सो जिणु ईसरू बंभु सो सो अणंतु सो सिद्ध ।। १०५ ।।' ७३ (क) 'अरहन्तु वि सो सिद्ध फुडु सो आयरिउ वियाणि । __ सो उवसायउ सो जि मुणि णिच्छई अप्पा जाणि ।। १०४ ।।' (ख) 'एव हि लक्खण-लक्खियउ जो परू णिक्कलु देउ । देहहँ मज्झहिँ सो वसइ तासु ण विज्जइ भेउ ।। १०६ ।।' (ग) 'जे सिद्ध जे सिज्झिहिं जे सिज्झहि जिण-उत्तु । अप्पा-दंसणिं ते वि फुडु एहउ जाणि णिभंतु ।। १०७ ।।' -वही । -वही । -वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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