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________________ १.१ १.२ १.३.१ १.३.२ १.३.३ १.३.४ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा अनुक्रमणिका अध्याय १ : विषय प्रवेश जैन दर्शन में आत्मा का महत्त्व जैन दर्शन में पंचास्तिकाय एवं षड्द्रव्यों की अवधारणा आत्मा का स्वरूप एवं लक्षण आत्मा एक स्वतन्त्र तत्त्व है आत्मा का अस्तित्व आत्मा एक मौलिक तत्त्व है आत्मा के लक्षण त्रिविध चेतना मनोविज्ञान की दृष्टि में चेतना आत्मा का कर्तृत्त्व १. आत्मा भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से कर्ता-भोक्ता है २. क्या आत्मा पौद्गलिक कर्मों की कर्ता है ? ३. आत्मा निज भावों की कर्ता है। ४. अकर्तृत्व सम्बन्धी सांख्यमत की समीक्षा ६. बौद्धदर्शन और आत्मकर्तृत्ववाद ७. गीता का दृष्टिकोण ८. आत्मभोक्तृत्ववाद ९. व्यवहारदृष्टि और निश्चयदृष्टि १०. जैनदृष्टि से अनित्य आत्मवाद की समीक्षा ११. नित्य आत्मवाद आत्मा को निष्क्रिय मानने में कठिनाईयाँ १. आत्मा की सक्रियता २. आत्मा का देह से पृथक्त्व ३. आत्मा स्वयम्भू और सम्प्रभु है Jain Education International For Private & Personal Use Only or m 2 8 ३ १७ २० ~ ~ ~ ~ ~ २१ २३ २५ २७ २८ २९ ३२ ३२ ३५ ३७ ३९ ४० ४० ४१ ४३ २ ते ते ढे के रे ४४ ४६ ४७ ४८ ४८ www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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