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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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परमात्मप्रकाश में योगीन्दुदेव ने आत्मा और परमात्मा की अभेद स्थिति का निरूपण किया है। उनका यह निरूपण संक्षिप्त होते हुए भी अत्यन्त भावपूर्ण है। वे लिखते हैं कि देहरूपी देवालय में अनन्त शक्तियों का स्वामी वह आत्मदेव ऐसे निवास करता है जैसे मानसरोवर में परमात्मदेवरूपी हंस निरन्तर रहता है। वैसे शुद्ध निश्चयनय से वह देह से भिन्न रहता है। __ परमात्मा देहरूपी मन्दिर में निवास करते हुए भी उससे अलिप्त है। देह मूर्तिक और अशुचिमय है जबकि परमात्मा अमूर्त और परमपवित्र है। देह का निर्माण होता है और वह नष्ट भी होती है, किन्तु परमात्मा अनादि और अनन्त है। देह जड़ है, किन्तु परमात्मा चैतन्य है। परमात्मा उपादेय है जबकि देह हेय है। परमात्मस्वरूप यह आत्मा संसार दशा में देहरूपी मन्दिर में रहते हुए भी उससे भिन्न है। आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में अपनी ज्ञानादि शक्तियों सहित शिवरूप है। वही परमात्मा है जो देह में रहकर भी देहातीत है और लोकालोक को प्रकाशित करने वाले
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५७ 'णिय-मणि णिम्मलि णाणियहं णिवसइ देउ अणाइ ।
हंसा सरवरि लीणु जिम महु एहउ पडिहाइ ।। १२२ ।।' ५८ (क) 'देहहँ उप्परि परममुणि देसु वि करइ ण राउ ।
देहहँ जेणं वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ।। ५१ ।।' (ख) 'वित्ति-णिवित्तिहिं परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ ।
बंधहं हेउ वियाणियउ एयहं जेण सहाउ ।। ५२ ।।' 'अप्पा मिल्लिवि णाणियहँ अण्णु ण सुंदरू वत्थु । तेण ण विसयहँ मणु रमइ जाणंतहं परमत्थु ।। ७७ ।।' 'अप्पा मिल्लिवि णाणमउ चित्ति ण लग्गइ अण्णु । मरगउ जे परियाणियउ तहुं कच्चें कउ गण्णु ।। ७८ ।' 'जीवा सयल वि णाण-मय जम्मण-मरण-विमुक्क ।
जीव-पएसहिं सयल सम सयल वि सगुणहिं एक्क ।। ६७ ।।' (छ) 'बंभहं भुवणि वसंताहँ जे णवि भेउ करंति ।
ते परमप्प-पयासयर जोइय विमलु मुणंति ।। ६६ ।।' (ज) 'राय-दोस बे परिहरिवि जे सम जीव णियंति ।।
ते सम-भावि परिट्ठिया लहु णिव्वाणु लहंति ।। १०० ।।'
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