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परमात्मा का स्वरूप लक्षण, और प्रकार
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५.२.१ आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि में परमात्मा का
स्वरूप
(क) मोक्षपाहुड के अनुसार परमात्मा
आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने नियमसार के अतिरिक्त मोक्षपाहुड में भी परमात्मा के स्वरूप का विवेचन किया है। वे लिखते हैं कि परमात्मा कर्मरूपी मल से रहित हैं। वे अतीन्द्रिय और अशरीरी हैं। वे विशुद्धात्मा केवलज्ञान से युक्त हैं और उन्हें परमेष्टि, परमजिन, शिवशंकर, शाश्वत्, शुद्ध आदि नामों से भी जाना जाता है। वे परमात्मा आठ दुष्ट कर्मों से रहित हैं, अनुपम एवं ज्ञान विग्रह रूप अर्थात् ज्ञानस्वरूप हैं। शुद्ध ज्ञाता-द्रष्टा आत्मद्रव्य को ही जिनेन्द्र भगवान ने स्वद्रव्य कहा है। जो परद्रव्यों से पराङ्मुख होकर अर्थात् बहिर्मुखी दृष्टि का परित्याग करके इस शुद्ध आत्मद्रव्य अर्थात् परमात्मा का ध्यान करते हैं, वे जिनेन्द्रदेव के मार्ग का अनुसरण करते हुए निर्वाण को प्राप्त होते हैं अर्थात् परमात्मस्वरूप को प्राप्त करते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों में शुद्ध आत्मतत्त्व में निमग्न होना ही परमात्मा बनने का एकमात्र उपाय है। वस्तुतः जो अपने शुद्ध आत्मतत्त्व में निमग्न रहता है वह परमात्मा ही है। उनके अनुसार जैसे कसौटी में कस कर स्वर्ण शुद्ध हो जाता है; वैसे ही तप आदि आत्मशोधन सामग्री से काललब्धि के परिपाक होने पर यह आत्मा परमात्मस्वरूप को प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार यहाँ आचार्य कुन्दकुन्ददेव यह बताते हैं कि कर्ममल से विमुक्त आत्मा ही परमात्मा है। आगे परमात्मा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुये मोक्षपाहुड में वे लिखते हैं कि कर्मकलंक से रहित
-मोक्षपाहुड ।
१२ 'मलरहिओ कलचत्तो अणिंदिओ केवलो विसुद्धप्पा ।
परमेट्ठी परमजिणो सिवंकरो सासओ सिद्धो ।। ६ ।।' १३ 'परमप्प झायंतो जोई मुच्चेइ मलदलोहेण ।
णादियदि णवं कम्मं णिद्दिढें जिणवरिंदेहिं ।। ४८ ।।' १४ 'विसयकसाएहि जुदो रुद्दो परमप्पभावरहियमणो ।
सो ण लहइ सिद्धिसुहं जिणमुद्दपरम्मुहो जीवो ।। ४६ ।।' 'अइसोहणजोएणं सुद्धं हेमं हवेइ जह तह य । कालाईलद्धीए अप्पा परमप्पओ हवदि ।। २४ ।।'
-वही ।
-मोक्षपाहुड ।
-वही।
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