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________________ २६० जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा पार करने वाले द्रव्य तीर्थ कहलाते हैं। जिनके द्वारा क्रोधादि विकार दूर होते हों, वह निर्ग्रन्थ प्रवचन भावतीर्थ कहा जाता है। तीर्थंकरों के द्वारा स्थापित चतुर्विध संघ भी संसार समुद्र से पार कराने वाला होने से भावतीर्थ कहा जाता है। भाव-तीर्थ के संस्थापक ही तीर्थंकर कहे जाते हैं। तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन कर आत्मा तीर्थंकर बनने की योग्यता प्राप्त कर लेती है। जिस भव में तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करता है उसके तृतीय भव में वह नियमतः तीर्थंकर बनता हैं। जैन परम्परा में सामान्य केवली की अपेक्षा तीर्थंकर की कुछ विशेषताएँ मानी गयी हैं, जिन्हें परम्परा में अतिशय के नामों से जाना जाता है। तीर्थंकर के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल्य और निर्वाण ऐसे पाँच कल्याणकों में इन्द्र एवं देव उपस्थित रहते है। इसके अतिरिक्त वे ३४ अतिशयों और ३५ वचनातिशयों से युक्त होते हैं। इस प्रकार सामान्य केवली की अपेक्षा से तीर्थंकरों में कुछ विशेषताएँ होती हैं। जिनकी विस्तृत चर्चा हम आगे करेंगे। यहाँ तो हमने केवल सामान्य केवली और तीर्थंकरों के अन्तर को स्पष्ट करने की दृष्टि से संकेत मात्र किया है। ५.१.३ सयोगी केवली और अयोगी केवली ___अर्हत् परमात्मा के एक अन्य अपेक्षा से निम्न दो प्रकार बताये जाते है : सयोगी केवली और अयोगी केवली। जैनदर्शन में योग शब्द मन, वचन और काया की प्रवृत्तियों का वाचक है। जब तक मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियाँ होती हैं तब तक अर्हत् या केवली को सयोगी कहा जाता है। चूंकि अर्हत् परमात्मा ४ (क) 'तीर्थंकर, बुद्ध और अवतारः एक अध्ययन' देखिये पृ. २७ एवं २८ ।-डॉ. रमेशचन्द्र । (ख) 'तित्थंति पुव्वभणियं संघो जो नाणचरणसंघाओ। इह पवयणं पि तित्थं, तत्तोऽणत्यंतरं जेण ।। १३८० ॥' -विशेषावश्यकभाष्य । इमेहिय णं बीसाए णं कारणेहिं आसेविय-बहुलीकएहिं तित्थयरनामगोयं कम्म णिव्वत्तिंसु, तं जहा ।। ६ ।।' - -ज्ञाता धर्मकथा ६/८/१८ । ६ (क) धवला ८/३, ३८/७५/१ । (ख) 'तीर्थंकर, बुद्ध और अवतारः एक अध्ययन' देखिये पृ. ३० से ३१ । -डॉ. रमेशचन्द्र । जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग १ पृ. १४० भाग २ पृ. १५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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