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प्रति हृदय के अन्तस्तल से भावभीनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ ।
स्वाध्याय संयुक्त, सरलता, सहजता की प्रतिमूर्ति, यथानाम तथा गुणों से सुशोभित, जैनदर्शन के गहन अध्येता डॉ. ज्ञानजी जैन को मैं विस्मृत नहीं कर सकती हूं। क्योंकि ग्रंथ चेन्नई प्रेस में छप रहा था और हमारा चातुर्मास बेंगलौर था इसी दरमियान प्रुफ लेकर सहज ही जाना-आना होता रहा और अपना अमूल्य समय प्रदानकर इस कृति में त्रुटियाँ न रह जाय, उस पर पूरा-पूरा ध्यान केन्द्रित करते हुए सम्पादन किया । आपके निर्मल, निश्चल सहयोग के प्रति मैं तहे दिल से सविनय प्रणत हूं ।
इस शोध - सामग्री को कम्प्युटराइज्ड करने में अनन्य निःस्वार्थ सेवाभावी, अगाध ज्ञानप्रेमी, देव गुरु भक्त सुश्रावकरत्न श्रीमान नवीनजी सा बुजुर्गावस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य की अस्वस्थता होते हुये भी निरंतर वैशिष्ट्य योगदान प्राप्त हुआ । आपमें जिनशासन के प्रति अपूर्व समर्पण के दर्शन हुए। आप कहा करते थे आप दोनों के शोधग्रंथ के टाइप का सारा कार्य मैं करूंगा व सम्पूर्ण उर्जा लगाकर कार्य पूर्ण किया । धन्य है आपकी महानता को, आपके वात्सल्यसिक्त भावों के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
इस ग्रंथ प्रकाशन में श्रुत सहयोगी खरतरगच्छ समर्पित, उदारहृदयी, शान्तमूर्ति, भाग्यशाली श्रावकरत्न श्रीमान तेजराजजी सा गुलेछा की सेवाभावनाऐं प्रशंसनीय, अतुलनीय व अनुमोदनीय है । आप साधुवाद के पात्र है। श्रुत सहयोग करके आपने अपनी उदारता का परिचय दिया है एवं खरतरगच्छ संघ का गौरव बढाया है । एतदर्थ मैं उनकी भी हृदय से आभारी हूं।
पीएच. डी. करने के उद्देश्य से जब हम शाजापुर आए, उस समय साध्वी श्रीदर्शनकलाश्रीजी आदि ठाणा ५ का सान्निध्य हमें सहज ही सम्प्राप्त हुआ । उनका आत्मीय सहयोग एवं सद्भाव निरन्तर प्राप्त हुआ, जिसे कदापि विस्मृत नहीं किया जा सकता ।
सरलता एवं सहजता के प्रतीक प्राध्यापक (संस्कृत) डॉ. वी. के. शर्मा एवं अनन्य सेवाभावी उपाध्याय भूदेवजी का भी सहयोग रहा है ।
शाजापुर श्रीसंघ के अध्यक्ष, परमात्मभक्ति रसिक श्री लोकेन्द्रजी नारेलिया एवं अन्य पदाधिकारीगण श्री ज्ञानचन्दजी सा. गोलेच्छा तथा श्री मनोजजी नारेलिया के प्रति भी मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित
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