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________________ अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार सुरक्षा के लिए आवश्यक माना गया है । दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि मुनि को सूर्यास्त के पश्चात् मन से भी आहारादि की इच्छा नहीं करनी चाहिये। महापुरुषों ने इस व्रत को नित्य का साधन माना है । रात्रि में भोजन करने से सूक्ष्म जीवों की हिंसा की सम्भावना रहती है; क्योंकि सूर्यास्त होने पर पृथ्वी पर सूक्ष्म त्रस एवं स्थावर जीव व्याप्त हो जाते हैं । अतः निर्ग्रन्थ मुनियों के लिए जीवहिंसा के बचाव हेतु रात्रि - भोजन का निषेध बताया है । १९५ दिगम्बरपरम्परा के अनुसार श्रमण के लिए रात्रि भोजन का त्याग आवश्यक है। आचार्य अमृतचन्द्र पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में लिखते हैं कि रात्रि में भोजन करने पर ब्रह्मचर्यव्रत का पालन निर्विघ्नतापूर्वक सम्भव नहीं होता। रात्रि में भोजन तैयार करने हेतु अग्नि और दीपकादि को प्रज्वलित करने से उसमें अनेक जन्तु आकर जल जाते हैं तथा उनकी हिंसा होती है । इस कारण रात्रि - भोजन हिंसायुक्त है । अतः साधु के लिए रात्रि - भोजन का निषेध किया गया है 1 १६६ ३. अष्टप्रवचन माता : समिति एवं गुप्ति पाँच समितियों एवं तीन गुप्तियों में जिन-प्रवचन का सार समाविष्ट है। इसलिए इन्हें अष्टप्रवचन माता भी कहते हैं। मध्यम- मध्यम अन्तरात्मा इन अष्टप्रवचन माताओं का सम्यक् प्रकार से पालन करती है । समितियाँ साधु के आचार के विधेयात्मक और गुप्तियाँ उसके निषेधात्मक पक्ष को प्रस्तुत करती हैं। इन समितियों के द्वारा श्रमण की शुभ प्रवृत्ति होती है। समिति शब्द 'सम' उपसर्गपूर्वक 'इण' (गती) धातु में भाववाचक क्तिन प्रत्यय लगाने से समिति शब्द बनता है । जिसका अर्थ है सम्यक् प्रकार से जाना या प्रवृत्ति करना । यहाँ हम इन पाँच समितियों एवं तीन गुप्तियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करेंगें । १६६ १६५ दशवैकालिकसूत्र ६/२१ । ६/२३-२६ । पुरुषार्थसिद्ध्युपाय १३२ । Jain Education International २७५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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